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फूलचन्द के ९ प्रश्नोत्तर
का उत्तर पूज्यजी महाराज को पूछ कर उनके कथनानुसार लिखा गया है । पाठकों की जानकारी के लिये वे प्रश्नोत्तर हम यहां उधृत कर देते हैं:
श्रीमान् फूलचंदजी के लिखे हुए प्रश्न
( १ ) चौथा से चौदहवां गुणस्थान की श्रद्धा एक है या भिन्न भिन्न ?
(२) जिन-प्रतिमा सूत्रों में चली है, यह किसकी है ?
(३) सुरियाभ देवता ने जिनप्रतिमा को पूजा एक बार की है या बार बार ? क्यों कि सूत्र के पाठ में पूर्वा पच्छा अर्थात् पहले और पीछे पूजा करना कहा है ? . (४) सूरियाभ देव आदि देवताओं ने जिन-प्रतिमा की पूजा कर नमोत्थुणं दिया है, यह करणी समकित की है या मिथ्यात्व की ?
(५) पूजा के फल के लिये-हियाए, सुहाए, रकमाए, निस्सेसाए और अणुगमिताए-इस प्रकार पाठ आया है, इसका क्या अर्थ होताहै ?
(६) सूत्र में, 'धूवदाउणं जिनवराणं' पाठ आया है, वहाँ देवताओं ने देवलोक में किस जिनराज को धूप दिया तथा इसका क्या मतलब है?
(७) यदि सम्यग्दृष्टि देवता अपने राज, भोग, सुख और मंग जिक के लिये जिन-प्रतिमा की पूजा करे, तोवह समकित कापाराधिक हाता है या पिराधी ? और इसी सूत्र में सूरियाम देवने भगवान् के पास आकर पूछा है कि हे प्रभो ! मैं आराधिक हूँ या। विराधिक, श्रादि १२ प्रश्न पूछे हैं। प्रभु ने उत्तर में कहा कि तू आराधिक है, अर्थात् छबोत्त प्रस्तुत कहा है, अर्थात् सम्यग्दृष्टि