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________________ आदश ज्ञान २१२ के एक तरफ तो गयवरचन्दजी पूज्यजी महाराज के पास आये और दूसरी तरफ जावरा के मन्दिरमार्गी लोग पूज्यजी महाराज दर्शनार्थ आये थे, क्योंकि पूज्यजी महाराज सब से प्रेम रखते थे और इसलिये ही सब लोग आपके दर्शनार्थ आया करते थे अतः वे मन्दिर मार्गी श्रावक भी पूज्यजी की वन्दना कर बैठ गये । ܘ उदयपुर के श्रावकों ने प्रश्न किया कि पूज्यजी महाराज, यदि कोई श्रावक मूर्ति को नमस्कार करे तो उसका क्या फल होता है ? पूज्यजी महाराज विचार में पड़ गये। क्योंकिइधर तो उदयपुर वाले मूर्ति के कट्टर विरोधी थे, उधर जावरा के मूर्ति पूजक श्रावक प्रेम से आये हुए बैठे हैं, तथा एक तरफ गयवरचन्दजी. भी बैठे हैं। उन्होंने सोचा कि मुख्यतो उदयपुर वाले श्रावकों का तथा गयवरचन्दजी का ही यह झमेला है, किन्तु इसको बढ़ने न देना ही अच्छा है । अतएव पूज्यजी ने उत्तर दिया कि पहले तो यह बतलाओ कि श्रावक किसको कहते हैं । श्रावक - अनंतानुबंधी चौक अप्रत्याखानीचौक मिध्यात्व मोहनी, मिश्रमोहनी, समकित मोहनी, एवं ११ प्रकृतियों का क्षय या वक्षयोपसम होने पर श्रावक कहलाता है । " पूज्यजी – अनंन्तानुबन्धी चौक किसे कहते हैं ? - उ० श्रावक - जिसकी गति नर्क की स्थिति जावतू जीव की घात करे, तो समकित की ऐसा क्रोध, मान, माया, लोभ को अन्तानुबन्धी चौक कहते हैं । पूज्यजा०० - अंतानुबन्धी क्रोध कितने परमाणु से बनता है ? उ० श्रावक - चौस्पर्शी अनंत परमाणुओं से बनता है ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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