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आदर्श-ज्ञान
२१० पूज्यजी-पूजा में जो जीव हिंसा होती है, उसका तो पाप लगता ही है न ?
गयवर-दयादान में कौनसा पाप नहीं होता है, वहाँ भी तो एकेन्द्रियादि जीवों की हिंसा होती है, तब वहाँ पाप क्यों नहीं माना जाता है ?
पूज्यजी-गयवर, तूंतो मूर्ख है, कभी दया दान में भी हिंसा होती है ?
गयवर-क्यों, दान देने में हाथ ऊंचा नीचा करना पड़ता है इसी भांति जीव बचाने में भी काय का योग प्रवृताना पड़ता है, जिसमें असंख्य बायुकाय के जीव मरते हैं ।
पज्यजी-भले ही कारणमें जीव हिंसा होती हो, पर कार्य तो शुद्ध है न ? ___गयवर-जिस प्रकार दया दान में कारण में जीव हिंसा होने पर भी कार्य शुद्ध माना जाता है, इसी प्रकार जिन-पूजा के लिये भी कारण कार्य क्यों नहीं समझ लिया जाता है।
पूज्यजी-दयादान की बात अलग है और मूर्तिपूजा की बात अलग है।
गयवर-हाँ दयादान तो सम्यग्दृष्टि और मिथ्यात्वी कोई भी जीव कर सकते हैं और उससे निज्जरा और पुण्य बन्ध होता है पर जिन पूजा तो भाव सहित केवल सम्यग्दृष्टि ही करते हैं, और उनके केवल कर्म की निर्जरा ही होती है, अतः दयादान की बजाय प्रभु पूजा का महत्व विशेष है।
पज्यजी-लो अभी तो इस चर्चा को छोड़ो, मैं फिर कभा सूत्रों के पाठ से तुमकों समझाऊँगा । उदयपुर की चर्चा के लिये