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________________ २०१ प्रश्न व्याकरण सूत्र की चर्चा कामाहणंति कयरेजेते सोयरिया मच्छवधा साउणयावाही कूरकम्मा इमेया बहबा मिलेरकु जाति किंते सका जबणा संबरा बबरा, काय मुरुडो अमुभ लेस्सा परिणामा ___ उपरोक्त पाठ सुना कर टब्वार्थ भी साथ ही साथ सुना दिया। इससे सेठजी की आँखें खुल गई, और उन्हें मालूम हुआ कि इस प्रकार के अनार्य एवं अशुभ परिणाम वालों के स्थान में मैंने श्रावक साधु की हिंसा समझ कर बड़ी भारी भूल की है । __मुनिजी क्यों सेठजी, क्या जो जैन श्रावक मन्दिर-मूर्ति बनाते हैं तथा घर-हाट करवाते हैं, वे आपकी राय में अब भी मंदबुद्धि वाले होंगे और दक्षिण की नरक में जावेंगे ? सेठजी- नहीं महाराज ! मेरी गलती हुई, जो मैंने सुनीसुनाई बात पर विश्वास कर लिया था। अब मैं इसके लिये पश्चाताप करता हूँ। यह प्रश्नव्याकरणसूत्र का पाठ सम्यग्दृष्टि के लिये नहीं, परन्तु क्रूरकर्मी, निध्वंश, परिणामी अशुभ लेश्या वाले अनार्य एवं मिथ्याह ष्टियों के लिये ही है। __मुनिजी-सेठ साहब मुझे फिर कहना पड़ता है कि आप तथा बहुत से अनभिज्ञ श्रावक ही क्यों, पर कई साधु भी कह उठते हैं कि प्रश्नव्याकरण सूत्र में हिंसा करने वाले को मंदबुद्धि और दक्षिण की नरक में जाना बतलाया है । परन्तु सूत्र के पूरे संबंध को पढ़ने पर यह स्पष्ट मालूम हो जाता है कि एकेन्द्रिय से लगा कर पंचेन्द्रिय जीवों तक की निर्दय एवं निध्वंशपरिणामों से हिंसा करने वाले अनार्य लोग ही दक्षिण की नर्क में जाते हैं, वग्ना सम्यग्दृष्टि वो एकेन्द्री जीवों को तो क्या पर मैथुन और संग्राम में पांचेन्द्रि
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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