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आदर्श - ज्ञान
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'पेट में तो मानो चूहों ने दौड़ा दौड़ मचादी; वे कई प्रकार के उपाय सोचने लगे ।
इधर जब सुना कि पूज्यजी महाराज भीलवाड़े पधारे हैं लगभग ६० आदमी जो मूत्तिं - पूजा के सिद्धान्त से प्रतिकूल थे कमर कसकर भीलवाड़े गये । वहाँ पूज्यजी महाराज के दर्शन कर के उन्होंने बीती हुई घटना अथ से इति तक कह सुनाई । पूज्यजी महाराज सब हाल सुनकर समझ गये कि सत्र की बात तो सच्ची है, किन्तु इन श्रावकों को क्या उत्तर देना चाहिये जिससे कि दोनों तर की बातें बनी रहें ।
पूज्यजी महाराज ने रात्रि के समय खूब सोच समझ कर सुबह श्रावकों को उत्तर दिया कि जब तक मैं गयवरचंदजी से न मिललू तब तक कुछ भी नहीं कह सकता हूँ । इधर उन्होंने एक खानगी श्रावक को कह दिया कि गयवरचंदजी को कह देना कि वे बिहार कर विना विलम्ब किए रतलाम चले जावें । इसमें तात्पर्य यह था कि रतलाम में सेठजी अमरचन्दजी पीतलिया, रूपचन्दजी अग्रवाला, इन्द्रचंदजी कावड़िया आदि अच्छे श्रद्धासम्पन्न और जानकार श्रावक हैं । गयवरचंदजी वहाँ जावेंगे तो वे हेतुयुक्ति द्वारा उनको समझा देवेंगे । पहिले शोभालालजी को भी इसी इरादे से रतलाम भेजा गया था ।
उदयपुर के श्रावक हताश होकर जैसे आये थे वैसे ही चले गये । पूज्यजी की आज्ञानुसार हमारे चरित्र नायकजी उदयपुर से बिहार कर बड़ी सादड़ी, कानोड़, छोटी सादड़ी आये । वहाँ के लोगों ने आपका व्याख्यान सुना तो चतुर्मास करने की विनती की। वहाँ पर एक चन्दनमलजी नागोरी नामक मूर्तिपूजक