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________________ आदर्श-ज्ञान १४२ देवेंगे तो देशी साधु तथा संवेगी साधु और अपने में क्या अन्तर रहेगा ? ____ कर्म०-अन्तर रखना ही क्यों है, पूज्यजी साहिब, केवल धोवण के आग्रह से ही कल्याण नहीं है। मेरा तो ख्याल यहां तक है कि गर्म पानी आधा कर्मी भी मिलता हो, तो रसचलित धोवण से तो हजार दर्जे श्रेष्ठ है । क्योंकि गर्म पानी में तो एकेन्द्र जीवों की विराधना है, पर धोवण में तो त्रस जीवों की विराधना होती है, जो एकेन्द्र से अनंत गुनी पुण्यवानी वाले होते हैं। __ पूज्यजी खुद प्रायः गर्म पानी या लोटे कलसियों का धोवण ( कच्चे पानी के माफिक ) पोते थे। आप समझ गये कि यदि इसकी अधक चर्चा की गई, तो फिर दूसरे साधुओं के दिल में भी शंका पड़ जायगी। पूर्वोक्त दोनों श्रावकों से भी पूज्यजी ने निर्णय करवाना ठीक नहीं समझा क्योंकि चूल्हे के पास का धोवण दस बजे से पाँच बजे तक जैसा का तैसा रह नहीं सकता; उसका वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अवश्य ही पलट जाता है । अतः पूज्यजी महाराज ने चुप रहना ही उचित समझा, और कर दिया कि आज तो रात्रि अधिक आ गई है;फिर इस विषय में निर्णय किया जायगा । पूज्यजी और कर्मचन्दजाका यह वार्तालाप एकान्तमें ही हुआ था, किन्तु एक साधु ने गुप्त रूप से छिप कर सुना, वही हाल यहाँ लिखा गया है। पज्यजी महाराज बड़े ही चतुर मुत्सद्दी थे ! दूसरे दिन व्याख्यान में सब साधु साध्वियों और स्थानिक गृहस्थों के अलावा प्रामों से आये हुए दर्शनार्थी लोग भी मौजूद थे । व्याख्यान में आपने मूति का विषय लिया, जिसमें चातुर्यता यह थी कि किसी
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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