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४-आपश्री को आगम बाचने का भी पूर्ण प्रेम है कई २० वार तो व्याख्यान में श्रीमगवती सूत्र वाचा होगा और कई साधु साध्वियों को सूत्रो की वाचना भी दी थी।
५-ज्ञान प्रचार के लिये आपश्री ने कई स्थानो पर ज्ञानभण्डार एवं लाइब्रेरियो की भी स्थापना करवाई।
६-समाज सेवाके लिये कई ग्राम नगरो मे सेवा मण्डल स्थापन करवाये । ७-विद्या प्रचार के हित कई बोर्डिग एवं विद्यालयां सोलाई ।
८-जहां धर्म की शिथिलता देखी तो तीर्थों की रचनादि महोत्सव करवा कर धर्म की जागृति करवाइ।
६-जनता की शान्ति के लिए शान्ति स्नानादि पूजाए पढाइ ।
१०-कई भावुकों को दीक्षा और कई एकों को समकित एवं व्रत देकर उनका उद्धार किया।
११-कई लोगों ने अपनी अज्ञानता के कारणं जैन धर्म एवं जैन जातियों पर मिथ्या प्रक्षेप किया जिन्हों का मुह तोड़ जवाब भी आपने ही दिया।
१२-जहां शास्त्रार्थ का मोका आया वहां शास्त्रार्थ करके वादियों के पराजय भी आपने ही किया। . १३-प्रश्नों के उत्तर-बहुत से लोग आपको रूबरू तथा पत्र द्वारा प्रश्न पूच्छा करते हैं जिसका यथोचित उत्तर आपश्री ने बड़ी योग्यता से दिया
१४-ढूंढ़िया पना छोड़ के आये तो आपको तीर्थों की यात्रा करने की भी उत्कण्ठ हो रही थी आपने स्वयं तथा बड़ा बड़ा संघ के साथ कई तीर्थों की यात्रा भी की। __ १५- आपश्री नये मान्दिरों का निर्माण की अपेक्षा जीर्ण मन्दिरों का उद्धार करवाना विशेष लाभ का कारण समझते हैं फिर भी आप श्री ने जीर्णोद्धार एवं नये मन्दिरों की कई स्थानों पर प्रतिष्ठाएं भी करवाई।
आशा है कि पाठक एक अलौकिक महात्मा का जीवन पढ़ कर अपना जीवन परोपकारमय बनावेंगे। इति शुभम् ॥
"प्रकाशक"