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आदर्श - ज्ञान
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आपने सब कार्य्य हाथ में लेकर उसको व्यवस्था पूर्वक चलाना शुरू किया, कुछ समय के बाद गणेशमल भी दिसावर से आगया । एक वर्ष पर्यन्त दोनों भाइयों ने खूब व्यापार चलाया, पर उसका नतीजा देखा तो खर्च काट कर थोड़ी रकम की बचत रही, इसका कारण यह था कि मारवाड़ के व्यापार में ज्यादा मुनाफा नहीं रहा । आसामियों के व्यापार में भी जमाना ठीक नहीं होने से बहुत कम आमदनी रह गई, इस हालत में दिसावर जाना अच्छा समझ कर गणेशमल को मारवाड़ का व्यापार सौंप कर आप दिसा वर गये और मुगलाई प्रान्त का परभणी शहर में जा कर कुछ समय तक तो नोकरी की, तत्पश्चात् घर का रुजगार किया, इसमें ठीक बचत रहने लगी, इस हालत में गणेशमलजी, हस्तोमल, और राजकुँवरी को भी वहीं बुला लिया, करीब ३ वर्ष व्यापार किया जिसमें अच्छी सफलता मिली ।
कारण आप और और जो पिताजी के
वि० सं० १९६३ में कुछ बीमारी के आपकी धर्मपत्नी राजकुँवरी मारवाड़ आये अन्तिम समय में गणेशमल का विवाह करने की भावना थी जिसकी पूर्ति के लिये आपने सावलता के सांढ़ों के वहां गणेशमलजी की सगाई का सम्बन्ध कर दिया, और जेवर वस्त्र भी वहां भेज दिया, यह मास था श्रावण का और माघ के मास में उसका विवाह करना भी निश्चय कर लिया ।
हमारे चरित्र नायकजी के नौ वर्षों में चार सन्तानें हुई किन्तु एक भी जीवित नहीं रही । औरतों में यह चर्चा फैल गई कि राज कुँवरी के बड़ली का भैरूँजी को यात्रा बोली हुई है, वह नहीं करने से इनके बाल बच्चा जीवित नहीं रहता है, अतएव बड़ली के