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का क्षेत्र देवता की स्तुति (पुरुषों के लिए) 'खित्तदेवयाए करेमि काउ. अन्नत्थ. मैं 'क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग करता हूँ। 'जीसे 'खित्ते 'साहू 'जिनके क्षेत्र में साधुगण 'दसण 'नाणेहिं 'चरणसहिएहिं 'सम्यग् दर्शन, ज्ञान चारित्र सहित "साहंति "मुक्खमग्गं मोक्ष मार्ग को "साधते है। "सा "देवी "हरउ "दुरिआई।।1।। "वे "क्षेत्र देवता "विघ्नों को "दूर करें।।1।। (नोट : उपरोक्त दोनों स्तुति का उपयोग त्रिस्तुतिक मत में नहीं होने से त्रिस्तुतिक वालों को कंठस्थ करने की आवश्यकता नहीं है।)
अढाईज्जेसु सूत्र - भावार्थ : इस सूत्र द्वारा अढ़ी द्वीप में रहे हुए सर्व साधु मुनिराजों को वंदन किया गया है। 'अड्डाईज्जेसु दीव समुद्देसु 'अढ़ी द्वीप समुद्र में रहे हुए 'पण्णरससु कम्मभूमिसु 'पंदर कर्मभूमि में रहे हुए 'जावंत के वि साहू जो 'कोई साधु 'रजोहरण "गुच्छ और "पात्रा स्यहरण "गुच्छ "पडिग्णह "धारा||1|| वगेरे (द्रव्यलिंग)"धारण करनेवाले।।1।। पंचमहव्वय 'धारा 'पांच महाव्रत, 'अट्ठारस सहस्स 'सीलंग धारा 'अढ़ार हजार शीलांग 'अक्खुयायार- चरित्ता 'अक्षत आचार और चारित्र वगेरे (भावलिंग)को 'ते सव्वे "सिरसा "मणसा 'धारण करने वाले है उन सर्व को "काया तथा "मन से "मत्थएण वंदामि।।2।। "वंदन करता हूँ।।2।।
___ नमोऽस्तु वर्धमानाय सूत्र
नोट : यह सूत्र मात्र पुरुषों के लिए हैं। बहनों को याद नहीं करना। 'इच्छामो 'अणुसटिं हे गुरुदेव ! 'आपकी आज्ञा को हम स्वीकार करते हैं। 'नमो 'खमासमणाणं
'क्षमाश्रमणों को नमस्कार हो,
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