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________________ असइ-पोसं च वज्जिज्जा।।23।। °असती पोषण : हिंसक पशुओं का, व्यभिचारी पुरुषों का, कुल्टा एवं वेश्या जैसी स्त्रियों का पालन करना, इन सब का श्रावक को त्याग करना चाहिए।।23।। (आठवें व्रत (तीसरा गुणव्रत अनर्थदंड विरमण व्रत) के अतिचार सत्थग्गि 'मुसल 'जंतग 'शस्त्र, अग्नि, 'मुसल, चक्की आदि यंत्र 'तण कट्टे मंत 'मूल भेसज्जे। 'तृण (झाडू आदि), 'काष्ठ , मंत्र, 'मूलकर्म और औषधियाँ, 'दिने "दवाविए वा, ये हिंसा के साधन, दूसरों को देने में और "दिलाने में "पडिक्कमे "देसिअं "सव्वं ।।24।। "दिन में लगे हुए "सब अतिचारों का "मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।।24।। 'हाणुव्वट्टण 'वन्नग 'अयतना से स्नान करने से, शरीर का मैल उतारने से, 'विलेवणे सद्द 'रुव 'रस 'गंधे।। 'वस्त्रादि रंगने से, 'चंदनादि का विलेपन, शब्द, रुप, रस एवं 'गंध में आसक्ति द्वारा द्वेष करने से। 'वत्थासण 'आभरणे 'वस्त्र, आसन और आभूषणों में आसक्त होने आदि में "पडिक्कमे देसिअं "सव्वं।।25।। दिन में लगे हुए "सब अतिचारों का "मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।।25।। 'कंदप्पे 'कुक्कुइए . कामवासना जनक बातें करने से विजातीय के साथ कुचेष्टा करने से 'मोहरि अहिगरण भोग-अइरित्ते; निरर्थक वचन बोलने से हथियार, औज़ार तैयार करने, करवाने से, भोगने की वस्तुओं को जरुरत से अधिक रखने से दंडम्मि अणट्ठाए, 'अनर्थदंड नाम के 'तइअम्मि गुणव्वए 'निंदे।।26।। 'तीसरे गुणव्रत में लगे इन अतिचारों की मैं निंदा करता हूँ।।26।। नवमें व्रत (प्रथम शिक्षाव्रत सामायिक) के अतिचार "तिविहे दुप्पणिहाणे, सामायिक में मन वचन एवं काया के दुष्प्रणिधान से "अणवट्ठाणे 'तहा सइ-विहूणे; अनादर से सामायिक करने से सामायिक करना भूल जाने से। 'सामाइय 'वितह-कए 'सामायिक व्रत विधि पूर्वक नहीं करने से,
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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