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________________ दिव्या नीचे बैठी वैसे ही सुषमा की आँखों से धड़-धड़ आँसू बहने लगे। तब दिव्या यह सोचकर अंदर चली गई कि जरुर आन्टीजी अपने मन की कोई बात मम्मीजी को कहने आई होगी। अतः मेरा यहाँ बैठना उचित नहीं है।) जयणा : अरे सुषमा ! क्यों रो रही हो ? क्या बात है? क्या हुआ सुषमा ? क्या डॉली की याद आ गई? सुषमा : (बड़ी मुश्किल से अपने आप को रोकते हुए) जयणा । मैं अब तक दो बार तुम्हारे घर समाधान लेने आई और दोनों ही बार तुम्हारे घर के वातावरण को देख अपनी आँखों से आँसुओं को रोक नहीं पाई। जयणा : क्यों सुषमा, ऐसा क्या हो गया ? सुषमा : जयणा, पहली बार मैं डॉली के लिए आई थी। तब मोक्षा के विनय ने मेरी आँखों में आँसू लाएँ और आज दिव्या के विनय को देख मुझे रोना आ गया। जयणा : सुषमा ! तुम बहुत ही टेन्शन में दिख रही हो। दिल खोलकर बताओ क्या हुआ? सुषमा : जयणा, डॉली के जाने के बाद मेरा एक मात्र सहारा था मेरा बेटा प्रिन्स। कई अरमान सजाकर बड़ी धूम-धाम से उसकी शादी करवाकर बहू को घर लाई थी। परंतु आज मेरे बेटे और बहू ही मुझे घर से बाहर निकालने के षड़यंत्र रच रहे हैं। (इतना कहकर सुषमा ने शुरुआत से लेकर प्रिन्स की धमकी तक की सारी बात जयणा को बता दी। ) सुषमा : जयणा ! तुम ही बताओ क्या कमी रखी मैंने प्रिन्स को प्यार देने में? प्रिन्स की गलती होने पर भी हमेशा डॉली को डाँटा। प्रिन्स के लिए कभी उसके पापा के साथ तो कभी डॉली के साथ झगड़ा किया। पर कभी प्रिन्स पर आँच भी नहीं आने दी। वही प्रिन्स जो मेरी हर बात मानता था, कभी मेरे सामने भी बोलना नहीं जानता था। वह आज अपनी पत्नी के बहकावे में आकर मुझे वृद्धाश्रम में भेजने की बात कर रहा है। तो सोचो वह खुशबू कैसी होगी? सोचा था कि खुशबू के आने के बाद मैं घर की जवाबदारियों से निवृत्त हो जाऊँगी, पर वह खुशबू तो मुझे घर से ही निवृत्त करने की ताक में है। मात्र सात दिनों में उसने अपना रंग दिखाना शुरु कर दिया। अब तुम ही खुशबू को कुछ समझाओ जयणा। जयणा : सुषमा ! यदि उसकी कोई गलती हो, तो मैं उसे कुछ समझाऊँ ना ? जब उसकी कोई गलती - ही नहीं है तो उसे कहकर क्या फायदा? सुषमा : क्या? यह क्या कह रही हो जयणा? इतना सब सुनने के बाद भी तुम यह कह रही हो कि
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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