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(आवाज़ सुनते ही आदित्य भी अपने कमरे से हॉल में आ गया। खुशबू की बात सुनकर सुषमा रोने लगी।) आदित्य : यह क्या हो रहा है? खुशबू : मैं आपकी बेटी की तरह आवारा लड़कों के साथ गुलछर्रे उड़ाने नहीं गई थी। अपने पति के साथ ही घूमने गई थी, समझी। आदित्य : प्रिन्स ! इसे चुप रखो। प्रिन्स : सही तो बोल रही है। क्या गलत कह दिया इसने? सुषमा : प्रिन्स ! शर्म आनी चाहिए तुम्हें ऐसी बात बोलते हुए। क्या तुम भूल गये कि डॉली तुम्हारी सगी बहन है? बरसों तक जिस बहन के साथ तू खेला-कूदा आज इसके आने पर तू उस बहन को भूल गया। कल की आई हुई ये, तेरी बहन के बारे में ऐसी बात करें और तुम चुपचाप सुन रहे हो। प्रिन्स : नहीं सुनूँ तो और क्या करूँ? काम ही उसने कुछ ऐसे किए है। खुशबू : कितना भी करो मम्मीजी ! सच्चाई कडवी ही होती है। किस-किस का मुंह बंद करवाओगी आप? सुषमा : खबरदार ! यदि इसके आगे किसी ने डॉली के बारे में कुछ भी कहा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। वह मेरी बेटी है। उसे जैसे जीना है वह जी रही है। तुम्हें उसमें बीच में बोलने की कोई जरुरत नहीं है। खुशब : वो यदि आपकी बेटी है तो मैं भी किसी की बेटी हूँ। जब वो अपनी मर्जी से अपनी जिंदगी जी सकती है तो मैं भी अपनी जिंदगी भली-भाँति जीना जानती हूँ। प्रिन्स : हाँ मॉम ! खुशबू बिल्कुल ठीक कह रही है। यही तो हमारे घूमने फिरने की उम्र है, आज तो खुशबू ने बाहर ही जिन्स पहना है। कल को शायद इसकी इच्छा हो तो घर पर भी पहन सकती है। इसलिए बेहतर यही होगा कि आप लोग आपके यह पुराने ख्यालात छोड़ दे या फिर अपने लिए अलग घर ढूँढ लें। अन्यथा मैं आप लोगों की वृद्धाश्रम में व्यवस्था करवा देता हूँ। यदि आपको इस घर में खुशी से रहना है तो आप अपनी जीभ को अब आराम दीजिए। यह मेरी लास्ट वॉर्निंग है।
प्रिन्स की बात सुनकर आदित्य और सुषमा सन्न रह गए। सुषमा के अरमानों का महल एक झटके में टूट गया। वृद्धाश्रम का नाम सुनते ही सुषमा की आँखों के सामने स्वयं के दुःखद भविष्य के चित्र तैरते नज़र आने लगे। सुषमा के हृदय में यह डर बैठ गया कि यदि सचमुच प्रिन्स ने उसे घर से बाहर