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हुई। कुछ दिन बाद विधि का जन्म दिन आया। तब बिगडे हुए संबंधों को सुधारने की इच्छा से दक्ष विधि के लिए एक सोने की अंगूठी, उसके मनपसंद रंग की साड़ी और साथ ही बाज़ार से केक और आईस्क्रीम भी लेकर आया। इतने सारे तोहफे देखकर विधि बहुत खुश हो गई और जन्मदिन के निमित्त से उनके जीवन में फिर खुशियाँ आने लगी । उन खुशियों में मिठास की और बढोतरी हुई जब विधि को पता चला कि वह माँ बनने वाली है। इससे दक्ष तथा दक्ष के मातापिता भी बहुत खुश हो गये ।
इस बात को हुए अभी एक महिना ही बीता था कि उनके हँसते-खेलतें जीवन को किसी की नज़र लग गई। एक दिन - )
दक्ष : विधि ! ये फाईल्स तुमने ठीक की हैं?
विधि : हाँ, बहुत अस्त-व्यस्त पडी थी तो मैंने ठीक कर दी ।
दक्ष : उसमें एक बहुत ही इम्पोर्टेन्ट पेपर था वो कहाँ है ?
विधि : दक्ष ! मैंने थोडे ही लिया है। यही पर पड़ा होगा।
दक्ष : (थोड़े गुस्से में) विधि ! दो घंटे से मैं ढूंढ रहा हूँ पर मुझे नहीं मिला। किसने कहा था तुम्हें मेरी चीज़ों को हाथ लगाने के लिए? आज यदि वो पेपर खो गया तो पता है मुझे कितना नुकसान होगा।
विधि : दक्ष ! तुम तो ऐसे बोल रहे हो जैसे मैं तुम्हारी चीज़ों को कभी हाथ ही नहीं लगाती और यदि अपनी चीज़ों का इतना ही ख्याल है तो खुद ही थोड़ा व्यवस्थित रखा करो ताकि मुझे हांथ लगाने की जरुरत ही ना पड़े और वैसे भी आज तक ऐसी तुम्हारी कौन सी चीज़ है जो तुम्हें ढूँढनी पड़ी है। आज एक पेपर क्या खो गया पूरा घर सिर पर उठा लिया।
दक्ष
चुप रहो विधि ! तुम्हारी ये बकवास बंद करो और पेपर ढूँढो ।
(दक्ष और विधि दोनों पेपर ढूंढने लगे, और ढूँढते - ढूँढते दक्ष मन ही मन कहने लगा, पता नहीं कहाँ रख दिया, मिल ही नहीं रहा । )
विधि : बस-बस ! अब मन ही मन मुझे गालियाँ देना बंद करो ।
दक्ष : तुम्हारे इस शंकालु स्वभाव के कारण ही तो मम्मी-पापा की ऐसी स्थिति है कि घर होते हुए भी उन्हें कॉटेज में रहना पड़ रहा है।
विधि : हाँ सारी गलतियाँ मेरी ही है। तुम्हें अपने माता-पिता की गलती तो दिखती ही नहीं। अपने माता-पिता के भक्त जो ठहरे।