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________________ (दक्ष क्या करता, किसके पक्ष में बोलता? ऐसे समय में उसे मौन रहना ही ज्यादा श्रेष्ठ लगा। क्योंकि उसे पता था कि जिस हद तक विधि बढ़ा-चढ़ाकर बता रही है उसके माता-पिता वैसे नहीं है। लेकिन विधि के आगे उसकी एक नहीं चलती थी। ____ एक दिन वृद्धावस्था होने के कारण दक्ष के पिताजी के दाँतों में दर्द होने लगा। वे डॉ. को बताने गए। डॉ. ने उनकी दाढ़ खराब होने के कारण निकाल दी और उन्हें थोड़ा गरम सीरा खाने की सलाह दी। दक्ष की मम्मी की तबियत खराब होने के कारण वे सो रही थी। सुधीर विधि से इतना डरता था कि वह विधि को सीरे के बारे में कह नहीं सका। इसलिए दक्ष से बात की-) सुधीर : बेटा ! आज डॉ. ने दाढ़ निकाली है इसलिए मुझे सीरा खाने को कहा है। तुम्हारी मम्मी की तबियत ठीक नहीं है। इसलिए तुम जरा विधि से कह दो कि वह सीरा बना दे। (दक्ष विधि से कहने के लिए अपने कमरे में गया) दक्ष : विधि ! आज पापा ने दाढ़ निकलवाई है। इसलिए पापा के लिए थोडा सीरा बना दो। विधि : अरे ! इतनी उम्र हो गई अब तक सीरा खाने का शौक नहीं गया। सीरा माँगने से पहले थोड़ी उम्र का तो लिहाज़ किया होता। वैसे भी बैल की तरह खा-पीकर इतने हट्टे-कट्टे हो गए हैं। अभी और सीरा खायेंगे तो हाथी जैसे हो जाएंगे। उनसे कह दो कि अभी र सब खाना छोड़ दे। यदि खाना ही है तो मम्मी से कहो कि रसोई में जाकर बना दें। फिर खुद भी खाएँ और तुम्हारे बाप को भी खिलाएँ। मैं चली शॉपिंग करने। वैसे भी मुझे बहुत काम है। दीपावली के दिन नज़दीक आ रहे हैं और मेरी पूरी शॉपींग भी बाकि है। (विधि की ये सारी बातें हॉल में बैठे उसके सास-ससुर ने सुन ली। हार्ट-अटेक आ जाए ऐसे विधि के शब्दों को सुनकर दोनों की आँखों से आँसू की धारा बहने लगी। जैसे ही दक्ष अपने कमरे से बाहर आया और हॉल में अपने माता-पिता को रोते देखा तो उसे स्थिति को समझते देर नहीं लगी कि मम्मी-पापा ने विधि की सारी बातें सुन ली है। दक्ष को देखते ही ......) सुधीर : बेटा दक्ष ! मुझे पता है कि तुम्हारी स्थिति कैसी है, तुम भी उसे कुछ नहीं कह सकते। बेटा ! इस रोज-रोज की खटपट से तो अच्छा है कि हम लोग तुमसे अलग हो जाए। जिससे चैन से दो वक्त की रोटी तुम्हें भी नसीब होगी और हमें भी। दक्ष : पापा ! ये आप क्या कह रहे हो? शारदा : बेटा ! ये ठीक ही कह रहे हैं। यदि हम लोग तुम्हारे साथ रहे तो झगड़े दिन-ब-दिन बढ़ते ही जाएँगे। इससे अच्छा तो हम कहीं दूर चले जाए जिससे कम से कम प्रेम तो बना रहेगा।
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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