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टूटा सपनों का महल
जैनिज़म के पिछले खंड में हमने देखा कि सुषमा के घर फोन की घंटी बजी। सुषमा का पुण्य प्रबल था और उसके खुशियों के दिन थे अतः फोन खुशबू के पियर से ही था । सुषमा की खुशी का कोई पार नहीं था जब उसे अपने दादी बनने की खबर मिली। इस तरफ कुछ सोच विचारकर अपनी माँ को अपनी दुःखद परिस्थिति बताने के लिए डॉली ने फोन तो उठाया पर अचानक सुषमा के अंतिम शब्द याद आए कि "बेटी यदि तुम आज अपने घर नहीं आई तो तुम्हारे लिए इस घर के दरवाज़े हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे।" यह याद आते ही डॉली ने तुरंत ही फोन रख दिया। उसका स्वाभिमान बोल उठा जिससे मैंने हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ दिया है। मैं उस घर में कैसे फोन कर सकती हूँ? उसने सोचा कि थोड़े दिनों में सब कुछ अच्छा हो जायेगा। पर परिस्थिति तो हद के बाहर बिगड़ने लगी और एक दिन डॉली रसोई घर में सब्जी पका रही थी तब समीर ने मुर्गी लाकर डॉली के सामने रख दी।
डॉली - समीर ! ये क्या लेकर आये हो और इसे यहाँ क्यों रखा हैं ?
समीर - अंधी हो गयी हो क्या ? दिखता नहीं मुर्गी है ?
डॉली - समीर तुम शराब पीकर आये हो। यानि तुम शराब भी पीते हो ?
समीर - शराब भी पीता हूँ, जुआँ भी खेलता हूँ। तुम्हारा सारा पैसा भी मैं जुएँ में हार गया और अब तुम्हारे हाथ से पकायी हुई यह मुर्गी भी खाऊँगा और तुम्हें भी खीलाऊँगा। बोल क्या कर लेगी?
डॉली : बहुत हो गया समीर । बर्दाश करने की भी एक हद होती है। मैं कोई तुम्हारे हाथ का खिलौना नहीं जो जब चाहा तब खेल लिया और जब चाहा तब छोड़ दिया। मेरे रहते इस घर में मुर्गी नहीं पकेगी। तुम्हें खानी हो तो कहीं बाहर जाकर खा लो।
समीर - वो ही मैं भी तुम्हें बताना चाहता हूँ कि बर्दाश करने की भी हद होती है। मेरी अम्मी तुम्हें कब तक बर्दाश करेंगी ? मैं तो बाहर खा लूँगा पर अम्मी का क्या ? इसलिए आज तुम यह मुर्गी पकाकर अम्मी को खिलाओगी।
(इतना कहकर समीर ने जबरदस्ती डॉली के हाथ में छुरी पकड़ायी और उसके हाथ से मुर्गी कटवायी । डॉली : ( रोते हुए) समीर ! प्लीज़, समीर ! ये क्या कर रहे हो ? प्लीज़ मुझे छोड़ो समीर....
(डॉली ने समीर से अपना हाथ छुड़वाने की बहुत कोशिश की, पर वह समीर के आगे हार गई और समीर ने उसके हाथों से मुर्गी कटवा दी। गुस्से में डॉली ने समीर के हाथ से अपना हाथ छुड़ाकर समीर को एक जोरदार थप्पड़ मारी । )
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