________________
रखते हुए एवं कोई दोष या अहंकार का सेवन न हो जाए उसका पूरा ख्याल रखते हुए 25 आवश्यक
का पूरा पालन कर गुरुवंदन करना चाहिए। प्र. द्वादशावर्त वंदन करने से क्या लाभ होता है? उ. 84 हज़ार दानशाला बंधवाने में जितना लाभ होता है, उतना पुण्य गुरु को सामुहिक द्वादशावर्त वंदन
करने से होता है।
सपात्र-दान
COUGGEORUM प्र. सुपात्र दान अर्थात् क्या? उ. श्रावक धर्म में दान धर्म का अग्रगण्य स्थान है। दान में भी सुपात्र दान सर्वश्रेष्ठ है। सुपात्र चार प्रकार
के हैं। (1) अरिहंत-रत्न पात्र (2) गणधर-सुवर्ण पात्र (3) गुरु (साधु-साध्वी)-रजत पात्र एवं (4) साधर्मिक-कांस्य पात्र। इन चारों में से साधु-साध्वीजी को दान देने की विशिष्ट विधि होने से सामान्यतया गोचरी वहोराने के अर्थ में सुपात्र दान प्रसिद्ध बन गया है।
साधु-साध्वी को आहार देने से उनके संयम जीवन में सहायक बना जाता है। उनकी संयम आराधना का हमें लाभ मिलता है। जीवन में धन-धान्य, भोग सामग्री आदि मिलना सरल है। लेकिन महान पुण्योदय के बिना निःस्पृही ऐसे साधु संतों का समागम होना अति दुर्लभ है। अतः जब गाँव में साधु-साध्वी भगवंत बिराजमान हो तब प्रतिदिन उत्कृष्ट भाव के साथ उनको गोचरी के लिए
निमंत्रण देना चाहिए। साथ ही गोचरी के निम्न दोषों को टालने का उपयोग रखना चाहिए :* गोचरी के समय सीढ़ियाँ एवं गृहांगन कच्चे पानी से गीले न हो इस बात का उपयोग रखें। * घर में अपने लिए बन रहे भोजन को साधु-साध्वी के उद्देश्य से बनाकर दूषित न बनाए। उनके उद्देश्य
से बनाकर वहोराने पर श्रावक और साधु दोनों पाप के भागी बनते हैं। हाँ, अपने लिए बनाए हुए भोजन
को उत्तम भावों से साधु-साध्वी भगवंतों को वहोराने से उत्तम फल मिलता है। * परिचित या अपरिचित सभी साधु-साध्वी को समान भाव से वहोराये, उनकी भक्ति करें। * गुरु महाराज को आए हुए देखकर लाईट, पंखा, टी.वी., गैस आदि बंद हो तो चालु एवं चालु हो
तो बंद नहीं करने चाहिए।
।