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करवाने लगे। पुणिया श्रावक ने साधर्मिक का महत्त्व कितना आत्मसात् किया होगा कि स्वयं की प्रतिकूल स्थिति में भी एकांतर उपवास करके साधर्मिक भक्ति करने लग गये। धन्य है उस पुणिया श्रावक को।
श्री 6. जगईशाह राजा वीरधवल के बाद उनकी राजगद्दी पर विशलदेव नामक राजा हुए। एक बार उनके राज्य में भयंकर दुष्काल पड़ा। तब उसी नगर के निवासी जगडुशाह सेठ ने तीन साल तक उस अकाल के समय में दानशाला चलाई। दान देते समय जगडुशाह स्वयं परदे के पीछे बैठते थे। जिससे दान लेने वालों को शर्म या संकोच की अनुभूति न हो। वास्तव में दाँये हाथ ने जो दिया, वह बाँये हाथ को भी पता न चले इस प्रकार दान देना चाहिए।
राजा विशलदेव जगइशाह की परीक्षा करने के इरादे से वेश बदलकर जगडुशाह की दानशाला में गये। वहाँ विशलदेव राजा ने परदे के बाहर खड़े होकर अपना हाथ लंबा किया। जगडुशाह ने हाथ देखा। उसमें रही हुई रेखा देखकर उन्हें पता चल गया कि यह किसी राजा का हाथ है। उन्होंने विचार किया कि “राजा भी इस हालत में है? फिर तो इन्हें विशेष दान देना चाहिए।" __ वैसे भी मानो कि यदि कोई व्यक्ति 2 रोटी खाता हो और कोई 12 रोटी खाता हो, और हम दोनों को समान ही रखे यानि कि 12+2=14 का आधा = 7। यानि दोनों को 7-7- रोटी दें तो दो रोटी खानेवाले को अजीर्ण होगा तथा 12 रोटी खाने वाला भूखा ही रह जाएगा। अतः 2 रोटी खानेवाले को 2 और 12 रोटी खानेवाले को 12 रोटी ही देनी चाहिए।
इसलिए जगडुशाह ने विशलदेव राजा के हाथ में किमती रत्न रखा। विशलदेव ने जब रत्न देखा तो पूछा “किसने यह रत्न किसको दिया है?" सेठ जगडुशाह ने कहा “आपके भाग्य ने आपको दिया है।" ऐसा सुनकर तुरन्त ही विशलदेव राजा ने परदा हटाया और जगडुशाह सेठ को देखकर उन्हें खुशी से गले लगा लिया। ऐसे महान गुप्त दानी थे जगडुशाह !.
27. माणेकलाल सेठी मुंबई नगर के बड़े व्यापारी सेठ माणेकलाल चुन्नीलाल के घर मंदिर में रही रत्न की प्रतिमा किसी श्रावक ने चुरा ली। उस समय माणेकलालजी भी मंदिर में ही थे। चोरी करनेवाले श्रावक को उन्होंने चोरी करते हुए देख लिया था। इसलिए वे जल्दी से मंदिर के बाहर आये और जब वह श्रावक भी मंदिर से