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________________ प्रेम का नशा जिंदगी में सजा जैनिज़म के पिछले खंड में आपने देखा कि किस प्रकार डॉली अपने माता-पिता के अरमानों को कुचलकर समीर के साथ भाग गई । यदि डॉली भाग जाने के बाद जीवन में आने वाले दुःखद परिणामों को ती तो शायद ही वह इतना बड़ा कदम उठाती, पर यौवन के बहकावे में आकर डॉली ने दुःखों की ओर ले जाने वाला अपने जीवन का एक अहम् कदम उठा लिया। बेचारी सुषमा ने कितने अरमान सजाए थे अपनी बेटी को अंतिम विदाई देने के, पर डॉली ने कब उस घर से हमेशा-हमेशा के लिए विदाई ले ली सुषमा को पता ही नहीं चला। (घर से निकलते ही समीर और डॉली एक होटल में गये । वहाँ...) डॉली : समीर! अब जल्द से जल्द अपनी कोर्ट मेरे ज़ का इंतज़ाम करो । समीर : डॉली! तुम चिंता मत करो। सारा इंतज़ाम हो गया है। कल 11 बजे हम कोर्ट में जाकर शादी करेंगे और वहीं से साढ़े बारह बजे की अपनी कश्मीर जाने की फ्लाइट है। मैं अब तुम्हें इस शहर में नहीं रखूँगा। डॉली : वाह समीर! हनीमून और वो भी कश्मीर | I love Kashmir तुम कितने अच्छे हो । मेरा कितना ध्यान रखते हो। समीर : हाँ डॉली! वो तो है.. डॉली : समीर ! क्या बात है तुम किस सोच में हो ? बहुत टेंशन में दिख रहे हो। समीर : जब से तुमसे प्यार किया है तब से दिल में ये ही अरमान है कि तुम्हें दुनिया की सारी खुशियाँ दूँ। मेरा बस चले मैं तुम्हें ज़मीन पर चलने भी न दूँ। तुम्हारी राहों पर फूल बिछा दूँ। तुम्हें दुनिया की सारी अच्छी चीज़ें दिखा दूँ। पर डॉली ! आज के ज़माने में ये सब करने में बहुत पैसों की आवश्यकता होती है और तुम तो जानती ही हो कि मैं नौकरी ढूँढने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहा हूँ, लेकिन मुझे कहीं अच्छी नौकरी ही नहीं मिल रही है। तुम्हें कश्मीर तो लेकर जा रहा हूँ लेकिन सोच रहा हूँ कि किस दोस्त के पास पैसे उधार माँगू? डॉली : अरे समीर! तुम क्यों चिंता करते हो। मैं अपने पापा के घर से इतने पैसे लायी हूँ कि हम सारी जिंदगी आराम से रहेंगे। उन सब पैसों पर अब तुम्हारा ही अधिकार है। तुम उन्हें जब चाहो, जैसे चाहो, जहाँ चाहो खर्च कर सकते हो। (इतना कहकर डॉली ने रुपयों का सूटकेस समीर के सामने रख दिया।) समीर : डॉली ! तुम मेरे लिए अपने पापा के यहाँ से इतने पैसे लेकर आयी हो। तुम मुझसे इतना प्यार करती (065
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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