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________________ वायव्य उत्तर ईशान वास्तुशास्त्र दिशा यंत्र पश्चिम पूर्व पूर्व (EAST) - शुभ पश्चिम (WEST) - अशुभ दक्षिण (SOUTH) - अशुभ उत्तर (NORTH) - शुभ नैऋत्य दक्षिण अग्नि * बाल्कनी : सदैव उत्तर या पूर्व की तरफ खुलनी चाहिए। बाल्कनी 3 फुट से ज्यादा लंबी नहीं होनी चाहिए एवं बाल्कनी में ज्यादा वजन नहीं रखना चाहिए। बाल्कनी की हाईट 9 या 10 फीट की होनी चाहिए। * टेलिफोन अग्निकोण में रखें। कोर्ट केस की फाईले या इंपोर्टेट पेपर हमेशा पूर्व या ईशान में रखें। जहाँ तक हो इष्ट देवता के आले के नीचे रखे तो इष्टकृपा प्राप्त होगी। ये फाईले कभी भी अग्निकोण में न रखे। * गैरेज : शास्त्रों के अनुसार कार पार्किंग हमेशा वायव्य कोण में होना चाहिए। यदि स्थान न हो तो अग्निकोण में हो सकता है। ईशान कोण में कार पार्किंग नहीं करनी चाहिए। * घर में गोदाम, भंगार, कबाड़ा, कचरा, अनुपयोगी सामान नैऋत्य कोण वाले कमरे में होने चाहिए। सही नैऋत्य कोण के अभाव में पश्चिम या दक्षिण दिशा का उपयोग कर सकते है। * बीमार व्यक्ति को जल्दी स्वस्थ करने के लिए वायव्य कोण में सुलाये। पश्चिम दिशा में वजन ज्यादा रखें उसे कभी खाली न रखें। वर्ना घर के लोगों का पैसा दवाईयों पर ज्यादा खर्च होगा। दवाई का बॉक्स ईशान में रखें। दवाई लेते समय अपना मुँह ईशान की ओर रखे। * अपने रहने के लिए बने घर का मुख्य दरवाजा पूर्व, उत्तर या इशान्य की तरफ होना चाहिये। पश्चिम, दक्षिण, आग्नेय व वायव्य की दिशा में यदि मुख्य दरवाज़ा हो तो वह योग्य नहीं है। * घर के मुख्य दरवाज़े के सामने खंभा, कुआँ, चौकोर यंत्र, बड़ा पेड, जुते-चप्पल बनाने की दुकान या अवैध धंधा करने वालों की दुकान नहीं होनी चाहिए। इनके होने से अशुभ फल की प्राप्ति होती है एवं अनेक व्यवधान आते है। * भवन को लगने वाली खिड़कीयों की संख्या सम हो। विषम संख्या नहीं होनी चाहिए।
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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