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बनाते है। बाह्य स्तर में व्यक्ति भले कितना ही सुखी क्यों न दिखे ; परंतु आंतरिक स्थिति उतनी ही अशांत बनती जा रही है; इस अशांतता का मूल कारण है दूषित वातावरण । " अणु - परमाणु शिव बनी जाओ" इस पंक्ति का अर्थ है कि बाह्य वातावरण में अणु - परमाणु पाप साधन के बदले धर्म साधन के रूप में परिवर्तित हो जाए। जिससे मंदिर, उपाश्रय बढ़ेंगे एवं पाप के साधन घटेंगे। इससे बाह्य वातावरण शुद्ध अर्थात् शिव रुप बनेगा तथा बाह्य वातावरण शिव रुप बनने पर हर व्यक्ति के मन पर उसका सुंदर प्रभाव पड़ेगा।
जैसे तीर्थ भूमि के शुद्ध वातावरण से वहाँ शिव रुप बने हुए अणु-परमाणु का प्रभाव व्यक्ति के मन पर पड़ता है, जिससे मन के परमाणु भी शिवरुप बन जाते है तथा जिसके मन में शुभ विचार चलते है, उसकी भाषा भी सुंदर बन जाती है अर्थात् भाषा भी शिव रुप बन जाती है और जिसके मन-वचन शुभ हो जाए उसकी काया का वर्तन शिव रुप बन जाए उसमें कोई आश्चर्य नहीं । इस प्रकार अणु-परमाणु के शिव रुप बन जाने से हर व्यक्ति के मन-वचन-काया के योग शुभ बन जाते है।
आखा विश्व नुं मंगल थाओ" अर्थात् वातावरण की शुद्धि से जीव मात्र का मंगल हो, सर्व जीव सुखी बनें।
"सर्वे जीवों मोक्षे जाओ" यहाँ सुखी बनने के बाद भविष्य में कोई जीव दुःखी न बनें। सर्व जीव शाश्वत सुख के स्थान रूप मोक्ष को प्राप्त करें ऐसी शुभ भावना इस मंत्र में व्यक्त की गई है ।
इस छोटे से मंत्र में विश्व मंगल की उत्कृष्ट भावना व्यक्त होती है। सर्व जीवों के मोक्ष की भावना हम जितनी अधिक करते है, हमारा मोक्ष उतना ही शीघ्र होता है। यह प्रकृति का नियम है कि हम दूसरों के लिए जो सोचते है वही हमें मिलता है। यदि हम दूसरों का भला चाहते है तो हमारा भी भला ही होगा एवं दूसरों
बुरा सोचते है तो हमारा बुरा हुए बिना नहीं रहेगा ।
तीसरा मंत्र - "तीर्थंकर मारा प्राण, क्षायिक प्रीति थी निर्वाण । " ( प्रतिदिन 27 बार गिनें )
जिसे विश्व मंगल करना हो उसे तीर्थंकर परमात्मा से अतिशय प्रीति करनी होगी और प्रीति को दृढ़ बनाने के लिए इस मंत्र का जाप बहुत सहायक है। जिस प्रकार प्राण के बिना जीवन नहीं होता उसी प्रकार प्रभु को प्राण से भी अधिक प्रिय बनाने होंगे। जिससे प्रभु के साथ हमारी प्रीति क्षायिक प्रीति बनेगी । क्षायिक प्रीति यानि कि इस शरीर के नाश होने पर भी जो प्रेम परभव में साथ चले, कभी क्षय न हो वह क्षायिक प्रीति है। यह क्षायिक प्रीति अवश्य ही व्यक्ति को सीमंधर परमात्मा से मिलन करवाती है। इस प्रकार इन तीन मंत्रों को जीवन मंत्र बनाने से सहज ही जीव का मोक्ष की तरफ प्रयाण हो जाता है ।
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