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________________ उत्सर्पिण हा मनकलना पति मुश्किल होता है। मात्र शासन के अनुरागी,देव ही शासन सेवा में या विमान के मन्दिर में प्रभु भक्ति से अल्प निर्जस कर पुनः मनुष्य गतिमी अत्तम चारित्रको प्राप्त करते हैं। का मनुष्य गति- यह पुण्य-पाप उपार्जन करने एवं विपुल कर्म निर्जरा करने तथा मोक्ष में जाने का उत्तम स्थान है। इस मनुष्य गति में व्यक्ति को अपने-अपने कर्मानुसार भोग सामग्री एवं धर्म सामग्री सब कुछ सुलभ है। भोग सामग्री का उपयोग नरक-तिर्यंच गति में ले जाता है एवं धर्म सामग्री के उपयोग से जीव मोक्ष के सन्मुख बनता है। इसलिए श्रेष्ठ तो मनुष्य गति ही है। अब हमें देखना होगा कि मनुष्य गति में ऐसा कौन-सा स्थान है कि जहाँ जाने से हम शाश्वत सुख को पा सकते है ? तो इसका जवाब है-महाविदेह क्षेत्र में। जहाँ सीमंधर स्वामी भगवान विचर रहे है वह श्रेष्ठ स्थान है। जिस प्रकार 2534 वर्ष पूर्व भगवान महावीर स्वामी ने भरत क्षेत्र में साक्षात् विचरकर अपने अतिशय से जीवों को मोक्षगामी बनाया उसी प्रकार वर्तमान काल में महाविदेह क्षेत्र में सीमंधर स्वामी भगवान विचर रहे हैं। हम इस शरीर से तो वहाँ नहीं जा सकते, लेकिन यदि हम यहाँ पर लक्ष्य बनाकर थोड़ा पुरुषार्थ करें, तो आने वाले भव में वहाँ जा सकते है, जहाँ साक्षात् सीमंधर स्वामी विचर रहे हैं। उनके समवसरण का ऐसा अतिशय होता है कि उनके सानिध्य में जाने मात्र से अपने कषाय शांत हो जाते है एवं परमात्मा की कृपा से ही हमारा मोक्ष की तरफ गमन सहज बन जाता है। इस प्रकार हमें भवभ्रमण एवं जन्ममरण के दुःखों से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है। . ! . . तो आप सब तैयार है ना? "महाविदेह क्षेत्र में सीमंधर स्वामी के पास जाने के लिए" यदि हाँ! तो आज से ही आप एक छोटा-सा प्रयास शुरु कीजिए। 1. इस पुस्तक के साथ प्रभु के समवसरण एवं विचरण करते हुए भगवान का लेमिनेटेड फोटो आपको दिया जा रहा है। उसे एक टेबल पर रखकर उसके नीचे लिखे हुए "एक ही अरमान है हमें समवसरण में सर्व विरति मिले" इस मंत्र को बोलते हुए प्रतिदिन कम से कम 27 प्रदक्षिणा लगाए। इस प्रकार प्रतिदिन प्रदक्षिणा लगाने पर लगभग डेढ़ साल में आपकी12,500 (बारह हज़ार पाँचसौ) प्रदक्षिणा पूर्ण हो जायेगी। इसके उपरांत भी यदि हो सके तो आप जीवन के अंत तक प्रदक्षिणा जारी रखें एवं न हो तो कम से कम 27 बार इस मंत्र का जाप करें। जिससे आपके हृदय(अनाहत चक्र) में एक लक्ष्य बन जायेगा कि मेरी एक मात्र यही इच्छा है कि मुझे सीमंधर स्वामी भगवान के समवसरण में सर्वविरति (दीक्षा) मिलें। इस क्रिया से प्रतिदिन आपकी आत्मा में निर्मलता बढ़ती जायेगी।
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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