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________________ यहाँ गुरु कहते है 'पुनरवि कायव्वं' : अर्थात् सामायिक वापस करने जैसी है (यह सुनकर किसी की अनुकूलता हो और भाव आ जाये तो तुरंत सामायिक संदिसाहुँ आदि आदेश लेकर सामायिक ले सकते है।) यहाँ श्रावक कहता है 'यथाशक्ति' - मैं शक्ति अनुसार सामायिक करने की भावना रखता हूँ। खमासमणा, इच्छा. सामायिक पायें ? - इसमें श्रावक कहता है मैं सामायिक पार रहा हूँ। गुरु कहते है- 'आयारो न मुत्तव्वो' - अर्थात् यदि आप सामायिक पार ही रहे हो तो कम से कम श्रावक के आचार मत छोड़ना। श्रावक कहता है - 'तहत्ति' - अर्थात् आपकी आज्ञा शिरोधार्य है। फिर बेटके पर हाथ रखकर झुककर मंगल के लिए नवकार गिनना। सामाइय-वय-जुत्तो - इस सूत्र में सामायिक से होने वाले लाभ बताए गए है। जैसे कि जब तक जीव सामायिक करता है तब तक अशुभ कर्मों का नाश करता है एवं वह साधु के जैसा होता है, अत: ज्यादा से ज्यादा सामायिक करनी चाहिए यह उपदेश सामायिक पारते समय हमें प्राप्त होता है। इससे हमें बार-बार सामायिक करने की इच्छा होती है। दश मनना : किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के पश्चात् अविधि का मिच्छामि दुक्कडम् देना जरुरी है। जिससे जानते- अजानते कोई दोष लगा हो तो वह दूर हो जाता है। उत्थापना मुद्रा में नवकार : स्थापित किये हुए स्थापनाचार्यजी की नवकार द्वारा उत्थापना की जाती है। सामायिक मंडल . आज हर गाँव, शहर, कस्बे एवं प्रत्येक एरिये में सामायिक मण्डल देखे जाते हैं, लेकिन सबसे पहला प्रश्न उठता है : सामायिक मंडल यानि क्या? सामायिक मंडल यानि समूह में सामायिक करना। घर के वातावरण में मन चल-विचल अधिक बनता है। उपाश्रय में सामायिक अधिक लाभप्रद बनती है। अकेला व्यक्ति सामायिक लेकर जो आराधना कर सकता है, उससे कई गुणा अधिक फायदा समूह में सामायिक लेने से संभवित है। सामायिक मंडल से लाभ1. समूह में कोई विशेष ज्ञानी नया अभ्यास कराता है। 2. एक-दूसरे को देखकर विशेष भाव जागृत होते है। (050
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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