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उपाय बताया है । इस पाप को खत्म करने के लिए अपने मन की चंचलता को छोड़कर एकाग्रता पूर्वक पूरी विधि के उपयोग से प्रतिक्रमण करूँगा। पूरे दिन भर में किये हुए हिंसादि पापों को मैं याद करके और प्रतिक्रमण में यथास्थान पश्चाताप पूर्वक उनका मिच्छामि दुक्कड़म् दूंगा। "श्री तीर्थंकर गणधर प्रसादात् मम एष योगः फलतु"।
आलोचना का प्रणिधान : आलोचना से कर्म रुप शल्य दूर हो जाते है, अत: इस शल्य को दूर करने में अहंकार तथा माया शल्य नहीं रखूगा। जो भी है जैसा भी है, मैं स्पष्ट रुप से तथा पश्चाताप पूर्ण हृदय से पाप को स्वीकार कर गुरुदेव से पाप का निवेदन करुंगा। गुरुदेव की करुणा एवं कृपा को सतत नजरों के समक्ष रखूगा। "श्री तीर्थंकर गणधर प्रसादात् मम एष योग: फलतु"।
पूजा का प्रणिधान : वाह! तीन लोक के नाथ के स्पर्श से मेरी आत्मा को पवित्र बनाने का मौका मिल रहा है। मुझे प्रभु के एक-एक उत्तम अंगों के स्पर्श से प्रभु के जैसा सामर्थ्य एवं शक्ति प्राप्त हो। पूजा से मुझे मन की प्रसन्नता प्राप्त हो। मुझे भी प्रभु के गुणों की प्राप्ति हो। "श्री तीर्थंकर गणधर प्रसादात् मम एष योग: फलतु"।
पौषध का प्रणिधान : पौषध साधु जीवन का आस्वाद लेने की उत्तम क्रिया है। पौषध में मैं अप्रमत्त रुप से क्रिया और स्वाध्याय करूँगा, लेकिन इस अमूल्य समय को बातों में एवं नींद में व्यर्थ नहीं करुंगा। "श्री तीर्थंकर गणधर प्रसादात् मम एष योग: फलतु"।
जाप के पूर्व प्रणिधान : अरिहंत प्रभु के नाम को ग्रहण कर जीभ और मन को पवित्र बनाना है। प्रभु के नाम से उत्तम वस्तु इस दुनिया में क्या है ? जिसके लिए मन को जाप छोड़कर बाहर जाना पड़े, अत: मैं एकाग्रता पूर्वक जाप करूँगा। "श्री तीर्थंकर गणधर प्रसादात् मम एष योग: फलतु"।
गोचरी वहोराते समय का प्रणिधान : आज मेरे अपूर्व पुण्योदय से गुरुभगवंत मेरे आंगन में पधारे है तो अत्यन्त भक्ति पूर्वक में उनका स्वागत करूँ। निर्दोष गोचरी का दान कर मैं कृतार्थ बनूँ। इन गुरुदेव को दान करने से मेरी आत्मा भवोदधि से पार हो जायेगी। "श्री तीर्थंकर गणधर प्रसादात् मम एष योग: फलतु"।
मंदिर बंधाने का प्रणिधान : घर बांधकर तो मैंने बहुत पाप किये है, लेकिन आज मुझे परमात्मा का मंदिर बंधाने का सुयोग मिला है। तो मैं इसके निर्माण में अपने घर से भी अधिक ध्यान एवं छाने हुए पानी का उपयोग आदि जयणा रखूगा। देवाधिदेव के मंदिर से कितने भव्य जीव तीर जायेंगे; इसका मुझे पूरा लाभ उठाना है। बाह्य मंदिर में प्रतिष्ठा के साथ मेरे मन मन्दिर में भी प्रभु की प्रतिष्ठा हो। "श्री तीर्थंकर गणधर प्रसादात् मम एष योगः फलतु"।