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कटती गाये करे पुकार बन्द करो यह अत्याचार
गाय, जिसे गौमाता भी कहा जाता है, यह गौमाता जो हमें दूध जैसा उत्तम रसायन प्रदान कर हमारे शरीर को पुष्ट बनाने में सहायक होती है। वही जब वृद्ध हो जाती है या दूध देना बंद कर देती है, हमें बोझ प्रतीत होने लगती है तथा चन्द रूपयों के बदले आज का मानव उसे कसाई के हवाले कर देता है, या बाज़ार में छोड़ देता है, तब लोगों के दण्डे खाती है या कसाई पकड़कर ले जाते हैं । जहाँ उसे क्रूरता से मार दिया जाता है। क्या यही व्यवहार हम अपनी माँ के साथ कर सकते हैं?
बूढ़ी गाय की चमड़ी कठोर बन जाने के कारण उसे साफ्ट बनाने के लिए उसे जंजीर से बांधकर ऐसी जगह खड़ी कर देते है जहाँ से उसके शरीर पर सतत गरम पानी का जोरदार फव्वारा चालू रहता है। इसके साथ-साथ 4-5 लोग हंटर से उसे जोर-जोर से पीटते है। ताकि उसका शरीर गर्म पानी एवं हंटर की मार से सूजकर फूल जाए। इतनी भयानक पीड़ा से छूटने के लिए वह बेचारी बहुत तड़पती है लेकिन कसाईयों के हाथ में जाने के बाद आज तक कौन बचा है ?
लगातार 8-10 घंटे की मार से बेचारी का शरीर सूजकर फूल जाता है और इस असहनीय पीड़ा से वह लगभग बेहोश सी हो जाती है। पर इतने से भी छुटकारा कहाँ ??? इसके बाद कसाई उसे करंट लगाते है। तब वह तड़प-तड़प कर अपने प्राण त्याग देती है। फिर उसके शरीर से चमड़ी उतारी जाती है। जिसके बने हुए पर्स, बूट, बेल्ट, कोट आदि वस्तुएँ पहनकर आप घूमते हो, और बड़ी शान से अपने आपको जैन कहते हो। क्या आप जैन कहलाने के लायक हो ???
जरा सोचिये ? चमड़े से बनी वस्तुओं का उपयोग कर कहीं आप ही तो गौमाता की इतनी क्रूरता पूर्वक बेरहमी से की गई हत्या के जिम्मेदार नहीं है ?