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________________ 2. श्री विश्वतारक रत्नत्रयी विद्या राजितं त्रिवर्षीय जैनिज़म कोर्स खण्ड 2 ओपन-बुक एक्जाम पेपर Total 120 Marks नोट : 1. नाम, पता आदि भरकर ही जवाब लिखना प्रारंभ करें। 2. सभी प्रश्नों के उत्तर, उत्तर पत्र में ही लिखें। 3. उत्तर स्वयं अपनी मेहनत से पुस्तक में से खोज निकालें। 4. अपने श्रावकपणे की रक्षा के लिए नकल मारने की चोरी के पाप से बचें। 5. जवाब साफ-सुथरे अक्षरों में लिखें तथा इसी पुस्तक की फाईनल परीक्षा के समय उत्तर पत्र के साथ संलग्न कर दें। 3. 4. Q. A रिक्त स्थानों की पूर्ति करें। (Fill in the blanks): संस्कारों के जड़ रूप में 1. का ज्ञान है। अपनी पत्नी के साथ. . ने 32 वर्ष की भर युवानी में ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार किया। चंद्र को देखकर जैसे चकोर हर्षित होता है, वैसे ही सुनंदा को देखकर . को वंदन करते हैं। 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 1. 2. 3. प्रभु समवसरण में नवमें देवलोक में देवों का शरीर जीवन रूपी सिक्के का दूसरा पहलु 72000 नगर के मालिक .. परमाधामी देव मरकर. सांपातिक जीवों की रक्षा उर्ध्वलोक में मेरुपर्वत . होते हैं। . मनुष्य के रुप में उत्पन्न होते हैं। नेमिनाथ प्रभु का छद्मस्थ काल . . दिन का था। भरत क्षेत्र के ... . के मध्य खंड में तीर्थंकर का जन्म होता है। . के उपयोग से होती है। स्थूलभद्रजी का नाम. . हाथ ऊँचा होता है। . है । ॥ श्री मोहनखेड़ा तीर्थ मण्डन आदिनाथाय नमः | ॥ श्री राजेन्द्र-धन- भूपेन्द्र यतीन्द्र-विद्याचन्द्र सूरि गुरुभ्यो नमः ॥ .योजन है। धर्म करने के लिए योग्य क्षेत्र है। एकेन्द्रिय की कायस्थिति . 800 लेखिका CR सा. श्री मणिप्रभाश्रीजी म.सा. Q. B सही उत्तर चुनकर लिखें (Choose the rightAnswer): 12 Marks (251⁄2 देश, करिकूट, अनंत, प्रेम, भीमा, असंख्य, 63000, केवलज्ञान, 32000 देश, जन्म, कौएँ, 84, सम्यग्दर्शन, विचार भेद, 80, स्वभाव भेद, वेदिका, क्षमा, हिरण, कर्मभूमि) . चौवीसी तक याद रहेगा। . उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी है। 159 12 Marks पागल हो गया।
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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