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________________ "हरिकांता नदी महापद्म द्रह पर्वत हरिकांता नदी और रोहितांशा नदी पश्चिम भाग को दो भागों में बाँटती हुई पश्चिम लवण समुद्र में मिलती है। ये प्रत्येक नदियाँ 28,000 नदियों के परिवार से युक्त है। इस प्रकार इस क्षेत्र में कुल 56,000 नदियाँ बहती है। यह अकर्मभूमि है, यहाँ हमेशा तीसरा आरा ही होता है। 4. महाहिमवंत पर्वत : हिमवंत क्षेत्र के पास महाहिमवंत पर्वत आया हुआ है। यह पर्वत हिमवंत क्षेत्र से दुगुणा है यानि कि यह पर्वत 4210 / योजन 10 कला चौड़ा तथा 200 योजन ऊँचा है। यह सोने का बना हुआ है। इस पर 8 कूट हैं। इसके मध्य में महापद्मद्रह हैं। इस द्रह से हरिकान्ता M o m एवं रोहिता ये दो नदियाँ निकलती है। रोहिता नदी हिमवंत क्षेत्र के पूर्व ' महाहिमवंत भाग में बहती है और हरिकान्ता नदी हरिवर्ष क्षेत्र के पश्चिम भाग में बहती रोहिता नदी है। इस द्रह की देवी का नाम 'हीदेवी' है। 5. हरिवर्ष क्षेत्र: महाहिमवंत पर्वत के पास हरिवर्ष क्षेत्र आया हुआ है। यह क्षेत्र महाहिमवंत पर्वत से दुगुणा है। यानि कि इस क्षेत्र का माप 8421 योजन 1 कला हैं। इस क्षेत्र के मध्य भाग में वृतं वैताढ्य पर्वत है। इस क्षेत्र में हरिकांता एवं हरिसलिला ये दो नदियाँ बहती हैं। हरिसलिला नदी हरिवर्ष क्षेत्र के पूर्व भाग को दो भागों में बाँटती हुई पूर्व लवण समुद्र में मिलती है और हरिकान्ता नदी पश्चिम भाग को दो भागों में बाँटती हुई पश्चिम लवण समुद्र में मिलती है। ये प्रत्येक नदियाँ 56,000 नदियों के परिवार से युक्त है। इस प्रकार इस क्षेत्र में कुल 1,12,000 नदियाँ बहती है। यह अकर्म भूमि है। यहाँ हमेशा दूसरा आरा होता है। . 6.निषध पर्वत: हरिवर्ष क्षेत्र के पास निषध पर्वत आया हुआ है। यह पर्वत हरिवर्ष क्षेत्र से दुगुणा है। यानि कि यह 16,842 योजन 2 कला चौड़ा तथा 400 योजन ऊँचा है। यह लाल सोने का बना हुआ है। इस पर 9 कूट है। इसके मध्य में तिगिच्छिद्रह है। इस द्रह से सीतोदा और हरिसलिला ये दो नदियाँ निकलती हैं। हरिसलिला नदी हरिवर्ष क्षेत्र के निषध पर्वत पूर्व भाग में बहती है और सीतोदा नदी महाविदेह क्षेत्र के पश्चिम भाग हरिसलिला नदी में बहती हैं। इस द्रह की देवी का नाम 'धृति देवी' है। 7. महाविदेह क्षेत्र : निषध पर्वत के पास महाविदेह क्षेत्र आया हुआ है। यह क्षेत्र निषध पर्वत से हरिसलिला नदी हरिवर्ष क्षेत्र सीतोदा नदी तिगिच्छि द्रह
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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