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दोनों मुनियों ने आकर श्रीसंघ व गुरुदेव को सारी बात बताई। भद्रबाहु स्वामी के इस प्रत्युत्तर को जानकर श्रीसंघ व गुरुदेव ने पुन: दो शिष्यों को तैयार कर भद्रबाहु स्वामी के पास भेजा। वहाँ जाकर उन्होंने भद्रबाहु स्वामी को पूछा 'यदि कोई संघ की आज्ञा नहीं मानता हो तो उसे क्या करना चाहिये ?' भद्रबाहु स्वामी जी ने कहा उसे संघ से बहिष्कृत कर देना चाहिये' उन शिष्यों ने कहा - 'इस वचन से आप भी संघ के बाहर हो जाते है।' भद्रबाहु स्वामीजी ने कहा – “मैं संघ की आज्ञा शिरोधार्य करता हूँ, परन्तु अभी मेरा महाप्राण ध्यान चालू होने से मुझे अधिक अवकाश नहीं मिल पा रहा है। फिर भी यदि दृष्टिवाद के अभ्यास के लिए जो मुनि यहाँ पधारेंगे, उन्हें मैं प्रतिदिन सात वाचना प्रदान करूंगा और ध्यान समाप्ति के बाद विशेष वाचनाएँ भी दे सकूँगा। इस प्रकार करने से मेरा कार्य भी सिद्ध होगा और संघ की आज्ञा का पालन भी हो सकेगा।" भद्रबाहु स्वामी के वचनों को सुनकर वे दोनों मुनिवर अत्यन्त संतुष्ट हुए। उन्होंने जाकर संघ व गुरुदेव को बात बताई। भद्रबाहु स्वामी के प्रत्युत्तर को जानकर संघ भी प्रसन्न हुआ और श्रीसंघ ने स्थूलिभद्र आदि 500 मुनियों को दृष्टिवाद सिखने के लिए भद्रबाहु स्वामी के पास भेजा।
· भद्रबाहु स्वामी अपनी अनुकूलतानुसार प्रतिदिन 7-7 वाचनाएँ देने लगे। परंतु स्थूलिभद्र मुनि को छोड़कर अन्य साधु अध्ययन करते-करते उद्विग्न बन अन्यत्र चले गए। एक मात्र स्थूलिभद्र मुनि ही निष्ठापूर्वक अध्ययनरत रहे। एक बार स्थूलिभद्र के मनोभंग को देखकर भद्रबाहु स्वामी ने पूछा “तुम खेद क्यों पा रहे हो?"
स्थूलिभद्र ने कहा - "अल्प वाचना के कारण"।
भद्रबाहु स्वामी ने कहा – “तूम चिंता मत करो, मेरा ध्यान लगभग पूर्ण होने आया है। ध्यान समाप्ति के बाद मैं तुम्हें पूर्ण संतुष्ट करने की कोशिश करूँगा"। कुछ समय बाद भद्रबाहु स्वामी का महाप्राण ध्यान पूर्ण हो गया। उसके बाद वे स्थूलिभद्र को खूब वाचनाएँ देने लगे परिणाम स्वरुप वे अल्पकाल में ही दशपूर्व के ज्ञाता बन गए।
एक समय की बात है। यक्षा आदि सातों साध्वियाँ अपने भाई स्थूलिभद्र को वंदन करने के लिए गुरुदेव के पास आई और पूछा ‘हमारे भाई मुनि कहाँ है?' आचार्य भगवंत ने कहा- “तुम आगे जाओ, वे अशोक वृक्ष के नीचे स्वाध्याय कर रहे है"। वे सातों साध्वियाँ अशोकवृक्ष की ओर आगे बढ़ी। परन्तु वहाँ उन्होंने स्थूलिभद्र के बजाय एक सिंह को बैठे देखा। वे एकदम भयभीत हो गई और तत्काल गुरुदेव के पास आकर बोली 'भगवंत वहाँ तो एक सिंह बैठा हुआ है। उस सिंह ने भाई मुनि का भक्षण तो नहीं किया है न?'