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________________ श्री वीर-गौतम चरित्र महावीर स्वामी का जन्म - कालचक्र का दुषम-सुषम नामक चौथा आरा बहुत बीत जाने के बाद चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को मध्यरात्रि के समय क्षत्रियकुण्ड ग्राम में माता त्रिशला की कुक्षि से तीन ज्ञान सहित प्रभु महावीर का जन्म प्रभु का जन्मोत्सव मनाने के लिए सर्व प्रथम छप्पन दिक्कुमारिकाओं ने आकर सूतिका कर्म किया फिर सौधर्म देवलोक के इन्द्र पधारें और प्रभु को मेरू पर्वत के पांडुक वन में ले गए। वहाँ सब इन्द्रइन्द्राणियों व देवों ने मिलकर प्रभु का जन्माभिषेक किया। पुत्र जन्म के बाद प्रियंवदा दासी ने सिद्धार्थ राजा को पुत्र जन्म की बधाई दी। यह सुनकर सिद्धार्थ राजा ने हर्षित होकर मुकुट के सिवाय शरीर पर धारण किए हुए सर्व आभूषण दासी को दे दिए एवं उसके दासत्व को हमेशा के लिए दूर कर दिया। साथ ही मुक्त हृदय से नगर में महोत्सव मनाया। कैदियों को बंधन मुक्त किया और नागरिकों का कर माफ कर दिया। नामकरण - जन्म के बाद बारह दिन के पश्चात् प्रभु के नामकरण का उत्सव रखा गया। प्रभु का नामकरण किसी पंडित के द्वारा संपन्न न होकर त्रिशला रानी तथा राजा सिद्धार्थ के विचार-विमर्श से संपन्न हुआ। सिद्धार्थ राजा ने स्वजन-संबंधियों से कहा- "हे देवानुप्रियों ! जिस दिन से यह पुत्र गर्भ में आया है उस दिन से हमारे राज्य भंडार में धन-धान्य, सोना-चाँदी, मणि-माणेक आदि की अपार अभिवृद्धि हुई है। इसलिए हम चाहते हैं कि पुत्र का नाम 'वर्धमान' रखा जाये।" उपस्थित सभी लोगों ने सिद्धार्थ राजा एवं त्रिशला रानी के प्रस्ताव का समर्थन किया और 'वर्धमान' के जयघोष के साथ नामकरण-संस्कार संपन्न हुआ। महावीर प्रभु के और भी अनेक नाम उपलब्ध होते हैं, यथा .1. माता-पिता के द्वारा प्रदत्त नाम 2. देवों द्वारा प्रदत्त नाम 3. पितृवंश के कारण प्राप्त नाम 4. काश्यप गोत्र के कारण 5. देवों के आदरणीय होने के कारण 6. माता त्रिशला विदेह कुल की होने के कारण 7. सहज स्वाभाविक गुणों के कारण प्रभु की आमलकी क्रीड़ा और देव पर विजय - 055 वर्धमान महावीर ज्ञातपुत्र काश्यप देवार्य विदेह पुत्र श्रमण
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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