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________________ "तित्थ-यरा "मे "पसीयंतु ।।5।। "तीर्थंकर प्रभु "मुझ पर "प्रसन्न हो ।।5।। 'कित्तिय-वंदिय-'महिया, 'लोक में जो श्रेष्ठ 'सिद्ध है वे, एवं 'जे ए 'लोगस्स उत्तमा सिद्धा; 'कीर्तन-वंदन-'पूजन किये गए ऐसे तीर्थंकर, "आरूग्ग- बोहि-लाभं, भाव-आरोग्य (मोक्ष) के लिए (कर्मक्षय के लिए) बोधिलाभ "समाहिवर"मुत्तमं "दिंतु.।।6।। एवं "उत्तम ''भावसमाधि "दें।।6।। 'चंदेसु निम्मलयरा, 'चंद्र से अधिक निर्मल, 'आइच्चेसु अहियं पयासयरा; सूर्य से अधिक प्रकाश करने वाले 'सागर-वर 'गंभीरा, स्वयंभूरमण समुद्र से अधिक 'गंभीर 'सिद्धा "सिद्धिं मम 'दिसंतु. ।।7।। सिद्ध भगवंत मुझे "सिद्ध पद "प्रदान करें।।।7।। . . 10. करेमि भंते (सामायिक) सूत्र बदर भावार्थ - यह सामायिक का प्रतिज्ञा सूत्र है । इसके द्वारा पाप व्यापार का पच्चक्खाण किया जाता है। 'करेमि 'भंते ! सामाइयं, 'हे भगवंत ! मैं सामायिक करता हूँ। 'सावजं जोगं पच्चक्खामि, 'पापवाली प्रवृत्ति का प्रतिज्ञापूर्वक त्याग करता हूँ (अतः) 'जाव नियमं पज्जुवासामि, 'जब तक मैं (दो घड़ी के) नियम का सेवन करूँ, (तब तक) "दुविहं,"तिविहेणं,"मणेणं,"वायाए "द्विविध, "त्रिविध से "मनसे, "वचन से, "काएणं "न करेमि "न कारवेमि; "काया से सावद्य प्रवृत्ति "न करूँगा, "न कराऊँगा। "तस्स"भंते ! "पडिक्कमामि, "हे भगवंत ! (अब तक किये) "पाप का "प्रतिक्रमण करता हूँ। २°निंदामि, "गरिहामि; स्वयं पाप की निंदा करता हूँ, "गुरु समक्ष गर्दा करता हूँ। 2 अप्पाणं "वोसिरामि. (ऐसी पाप वाली) आत्मा का त्याग करता हूँ। VER 11. सामाइय-वय-जुतो (सामायिक-पारण) सूत्र पर भावार्थ - इस सूत्र में सामायिक की महिमा दर्शाई है। चारित्र धर्म की आराधना के लिए बार-बार सामायिक करनी चाहिए। 'सामाइय-वय-'जुत्तो 'जाव, 'सामायिक व्रत से युक्त जीव 'जब तक 'मणे होइ नियम-'संजुत्तो, मन में नियम से 'युक्त होता है। (052
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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