________________
RT 1. नमस्कार (नवकार) सूत्र बत भावार्थ - इस सूत्र को 'नवकार मंत्र' भी कहते हैं । जैन धर्म का यह परम श्रेष्ठ मंत्र हैं । प्रतिदिन प्रतिपल इसका जाप करना चाहिए। 108 बार इसका जाप करने से आत्मिक बल प्राप्त होता है। 'नमो 'अरिहंताणं। 'अरिहंत भगवंतों को मैं नमस्कार करता हूँ। 'नमो सिद्धाणं। *सिद्ध भगवंतों को 'मैं नमस्कार करता हूँ। . 'नमो आयरियाणं । आचार्य भगवंतों को मैं नमस्कार करता हूँ। 'नमो 'उवज्झायाणं। 'उपाध्याय भगवंतों को मैं नमस्कार करता हूँ। 'नमो लोए "सव्व-साहूणं । लोक में (रहे) "सर्व साधु भगवंतों को "मैं नमस्कार करता हूँ। "एसो "पंच-नमुक्कारो, “इन" पाँचों को किया गया नमस्कार, "सव्व -पाव-प्पणासणो। “समस्त (रागादि) "पापों का अत्यन्त नाशक है, मंगलाणं "च "सव्वेसिं, "एवं "सर्व मंगलों में, पढमं 'हवई °मंगलं ।। श्रेष्ठ मंगल है।
2. पंचिंदिय (गुरुस्तुति-गुरुस्थापना) सूत्र मदर. भावार्थ - गुरुजनों की अनुपस्थिति में सामायिक-प्रतिक्रमण आदि धर्मक्रियाएँ करते समय इस सूत्र के द्वारा गुरु स्थापना की जाती है। पंचिंदिय-संवरणो,
'पाँच इन्द्रियों (चमड़ी, जीभ, नाक, आँख, कान)के विषयों
को रोकने-वाले। 'तह 'नव-विह-'बंभचेर-गुत्ति- धरो। तथा नौ प्रकार की ब्रह्मचर्य की गुप्ति का पालन करने वाले 'चउविह- कसाय-मुक्को, 'चार प्रकार के कषायों (क्रोध, मान, माया, लोभ)से मुक्त, "इअ "अट्ठारस-गुणेहिं "संजुत्तो ।। 1 ।। "इस प्रकार "अट्ठारह गुणों से "सुसंपन्न ।।1।। पंचमहव्वय-जुत्तो,
'पाँच महाव्रतों (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) से युक्त पंचविहा-'ऽऽयार- पालण-समत्थो पाँच प्रकार के आचार के पालन में समर्थ 'पंच-समिओ 'ति-गुत्तो, 'पाँच समिति वाले एवं 'तीन गुप्ति से गुप्त 'छत्तीस-गुणो "गुरू मज्झ ।।2।। ऐसे छत्तीस गुणवाले मेरे "गुरु हैं ।। 2 ।।