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सूत्रोच्चार में खास ध्यान रखने योग्य बाते? * सूत्र बोलते समय अ, ह, रि, ए, य इन अक्षरों का खास ध्यान रखना चाहिए। कई बार ध्यान होने पर भी बोलते समय ये अक्षर गौण बन जाते है। 'ह' महाप्राण होने से इसको बोलने में थोड़ा जोर पड़ता है। जैसे- नमो अरिहंताणं, इसमें 'ह' शब्द का उपयोग न रहने से कई बार 'नमो अरिंताणं' ही बोल देते है। इसी प्रकार
पंचवियार पालण न बोलकर पंचविहायार पालण... इच्छामि खमासणो न बोलकर इच्छामि खमासमणो मथेण वंदामि न बोलकर मत्थएण वंदामि इरियावियाये न बोलकर इरियावहियाए बोलना चाहिए। जहाँ जोडाक्षर हो वहाँ पूर्व के अक्षर पर जोर दें एवं आधा अक्षर पूर्व के अक्षर के साथ बोलें। लोगस्स उज्जोअगरे, लो-गस्-स उज्-जोअ-गरे। धम्मतित्थयरे जिणे, धम्-म-तित्-थ-यरे जिणे। अरिहंते कित्तइस्सं, अरि-हन्-ते कित्-त-इस्-सम् । चउवीसंपि केवली, चउ-वी-सम्-पि केव-ली।
पडिक्कमामि, पडिक्-क-मामि * ह्रस्व दीर्घ का पूर्ण ख्याल रखें । दीर्घ (बड़ी) मात्रा हो वहाँ पर स्वर लम्बाना चाहिए। जैसे 'सव्व साहूणं' में 'हू' लम्बाना चाहिए। * सूत्र में जहाँ भी प्रश्नात्मक चिन्ह है, उसे प्रश्न रूप में बोले जैसे -
इरियावहियं पडिक्कमामि ? यह वाक्य प्रश्नरूप है, इसलिए प्रश्न करते हो इस प्रकार बोलें। * पणग-दग, मट्टी-मक्कडा, संताणा संकमणे इस प्रकार दो-दो पदों को साथ में नहीं बोलना। परंतु पणग अलग बोलकर, दग-मट्टी साथ में बोलना तथा मक्कडा संताणा साथ में बोलकर फिर रुककर संकमणे पद बोलना। * बोलते समय जहाँ वंदे, वंदामि आदि नमस्कार सूचक शब्द एवं मिच्छामि दुक्कड़म् आदि आते हैं, वहाँ थोड़ा रुककर उन्हें थोड़ा जोर से बोलना चाहिए ताकि स्वयं को एवं अन्य को मस्तक झुकाने का उपयोग रहे। * प्राय: तो सूत्र के सामने शब्द के अनुसार अर्थ देने की कोशिश की है। लेकिन कहीं-कहीं अन्वय के अनुसार अर्थ दिये हैं। सूत्र पर जो नम्बर दिये गये है तदनुसार अर्थ के नम्बर देखने पर शब्दार्थ प्राप्त होंगे, तथा संलग्न अर्थ पढ़ेंगे तो आपको सहज गाथार्थ समझ में आ जाएगा।