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________________ । बाहर फक दत हा लाकन पगार के पैसे कट हाँ जान के भय से दूध आदि की बाहर नहीं फेकत। फिर उसी दूध में मसाला डालकर स्पेशल चाय बनाकर ग्राहकों को पिलाते है। 8. साथ ही महिनों तक साग-सब्जी आदि बनाने के बर्तन नहीं धोते, क्योंकि दूसरे दिन पुन: उन्हीं बर्तनों में रसोई बनानी होती है। अब आप ही बताईए साहेबजी यह सब साक्षात् आँखों से देखने वाला मैं भला होटल की रसोई कैसे खा सकता हूँ? साहेबजी- बाप रे बाप! आपकी बातें सुनकर तो मेरा हृदय कांप उठता है कि हमारे जैन भाई क्या ऐसा खाना खाने होटल जाते है? लेकिन मेरे दिल में एक शंका उठती है कि यदि सब माल हल्का, सब काम हल्का तो ऐसी रसोई से लोग आकर्षित क्यों होते है? होटल में ऐसा आप क्या कर देते हो जिससे लोग स्वाद के लिए आपकी होटलों पर टूट पड़ते हैं। मेनेज़र - आज की दुनिया ने स्वाद के लिए क्या बाकी रखा है? एक बात मैं आपको बता दूं कि वर्तमान में मसाला प्रिय लोगों को मूल में साग-सब्जी, धान्य या बासी से कुछ लेना देना नहीं होता। वस्तु उत्तम क्वालिटी की हो या हल्की क्वालिटी की मात्र उस पर अच्छे-अच्छे colourful एसेन्स, Flavour आदि डाल दें, थोड़ी काकड़ी, टमाटर सजा दें एवं मसाला डाल दे तो चीज़ दिखने में आकर्षित तथा इतनी सुगंधी बन जाती है कि भल-भला व्यक्ति भूखे भेड़िए की तरह उस पर टूट पड़ता है। साहेबजी- आपने आपके होटल की सारी कहानी खुली किताब की तरह मेरे सामने खोलकर रख दी। क्या आपके मन में यह डर नहीं उठता कि यदि मैं व्याख्यान या किसी लेख में यह बात लिख दूँ तो आपकी होटल का क्या होगा? मेनेजर - मेरे मन में बिल्कुल डर नहीं है। वैसे आपने मेरी होटल का नाम तो पूछा ही नहीं है। मेरी बातों से आपको जनरल होटल में क्या होता है उसका सचोट ज्ञान हो गया है लेकिन इसमें डरने जैसी क्या बात है? क्योंकि इस वर्ष चातुर्मास में मैंने आपके प्रवचनों में जीव मात्र पर मैत्री एवं करुणा रखने वाले देवाधिदेव का स्वरुप एवं उनकी भावना सुनी है। सुनते-सुनते कई बार मेरे होटल में होने वाली जीव हिंसा का दृश्य मेरी आँखों के सामने तैर आता था। उस समय कई बार मुझे यह धंधा बंद कर देने का मन हो जाता था। लेकिन लोभ वश में इतना साहस नहीं कर पाया। मेरे मन में अपने जैन भाईयों के शरीर-मन और आत्मा को नुकसान पहुँचाने में भागीदार बनने का पाप सतत डंक दे रहा है। आपकी कृपा से यदि सहज रुप से ही हमारे जैन भाई होटल का खाना छोड़ देंगे तो मेरे लिए यह सोने में सुहागा होगा। मेरी होटल बंद हो जायेगी तो मैं
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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