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________________ जादू से मात्र एक शरीर में रहे हुए अनंत जीवों को कबूतर जितना बना दें तो वे पूरे विश्व में नहीं समा पायेंगे। यह तो हुई आलू के एक कण में रहे एक शरीर की बात। अब तुम ही सोचो जयणा कि एक आलू के टुकड़े में कितने जीव होंगे? और एक पूरे आलू में कितने जीव होंगे? एक बात विशेष ध्यान में रखने जैसी है कि जीव के जैसे भाव होते है वैसा ही भव मिलता है। जैसी मति होती है वैसी गति मिलती है। एक भाई चौदस के दिन घर पर भोजन करने आया। उसकी पत्नी धार्मिक थी। इसलिए उसने सूकी सब्जी बनाई। भाई अधर्मी था। उसने कहा- "मैं यह सब्जी नहीं खाऊँगा। मुझे तो अभी ही आलू की सब्जी चाहिए।" बहन ने खूब समझाया। फिर भी वह नहीं माना। मुझे चौदस से कुछ लेना-देना नहीं है। मुझे तो आलू ही चाहिए। पत्नी ने रोते-रोते सब्जी बनाकर दी। भाई ने जैसे ही सब्जी खाने के लिए रोटी का टुकड़ा लिया वहीं पर हार्ट अटेक से मर गया। यमराज के सामने किसी की भी नहीं चलती। आप कल्पना कीजिए कि वह भाई मरकर कहाँ गया होगा? 1. फ्रीज का पानी पीते-पीते आयुष्य बंध हो जाये तो - अप्काय (पानी) में जन्म, 2. गरमा-गरम चाय पीते-पीते आयुष्य बंध हो जाये तो - तेउकाय (अग्नि) में जन्म, 3. ए.सी. की ठंडी हवा खाते-खाते आयुष्य बंध हो जाये तो-वायुकाय (हवा) में जन्म होने की संभावना रहती है। ___ मरते समय उस भाई का मन आलू में ही रह गया था "जैसी मति वैसी गति" इस युक्ति से संभव है कि उनका जन्म आलू में हुआ होगा। आलू में जन्म लेने वाले जीव की दशा जानकर तो तुम काँप उठोगी। आलू अनंतकाय है। जहाँ एक श्वास में 18 बार जन्म और 17 बार मरण होता है। * आलू के एक शरीर में अनंत जीव होते हैं। यदि अपने शरीर में एक प्रेत आत्मा प्रवेश करे तो भी हम सहन नहीं कर सकते। तो अनंत जीवों को एक साथ में श्वास लेना छोड़ना आदि कितना दुःखद होता होगा। * वहाँ एक बार जन्म लेने के बाद कम-से-कम अनंत भव तो करने ही पड़ते हैं। उसके बाद ही वहाँ से दूसरी गति में जा सकते हैं। * यदि जीभ के तुच्छ स्वाद के लिए ऐसी गतियों में अनंत दुःख को सहन नहीं करना हो तो आप लोग आज और अभी से ही कंदमूल का त्याग कीजिए। जयणा - साहेबजी.! मुझे ना तो ऐसी कोई गति में जाना है ना नरक-निगोद में घूमना है और ना ही छठे आरे में भटकना है। मैंने आजीवन कंदमूल त्याग करने का निर्णय ले लिया है।
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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