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________________ प्र.: साधु एवं भिखारी दोनों के पास सुख-सामग्री के साधनों का अभाव है, तो दोनों में अंतर क्या है? साधु भिखारी 1. साधु स्वेच्छा से संसार के सुखों का भिखारी के पास संसार सुख के साधन त्याग करता है। न होने से भोग नहीं पाता। 2. साधु के मन में संसार के सुखों की भिखारी के मन में संसार सुख की सतत कोई इच्छा नहीं होती। झंखना रहती हैं। 3. साधु भिक्षा न मिलने पर तपोवृद्धि मानकर भिखारी भिक्षा न मिलने पर दुःखी ___ आनंद में रहते है पर किसी को उपालम्भ नहीं देते। बनकर लोगों को गाली देता है। 4. साधु त्याग करने पर पूजनीय भिखारी मांगने की वृत्ति से निंदनीय . बनता है। एवं घृणा पात्र बनता है। दृष्टान्त- एक भिखारी तीन दिन से कुछ भी खाने को न मिलने से एक सेठ के घर भीख मांगने गया। सेठ ने उसे कुछ भी दिए बिना तिरस्कार कर निकाल दिया। इतने में दो साधु महात्माजी पधारें। सेठ ने उन्हें बड़े भाव से आमंत्रण कर मिष्ठान वहोराया। दूर खड़े भिखारी ने यह दृश्य देखा। जैसे ही मुनि भगवंत वहोरकर बाहर आए वैसे ही भिखारी ने उन मुनियों के पास खाना माँगा। मुनि ने कहा - इस भिक्षा पर हमारे गुरु का अधिकार ____ यह सुन वह भिखारी भी उन महात्माओं के साथ उपाश्रय पहुँच गया। वहाँ उसने उनके गुरु से भिक्षा माँगी। गुरु ने उसे योग्य जानकर कहा कि- "भाई! यदि तुम दीक्षा लेते हो तो हम तुम्हें हमारा लाया हुआ भोजन दे सकते हैं। एक क्षण का भी विलम्ब किए बिना भिखारी ने खाने के लिए दीक्षा ले ली। फिर उसने पेट भरकर खाना खाया। कई दिनों से भूखे होने के कारणं एक साथ पेट भरकर भोजन करने से रात्री में भयंकर शूल पीड़ा उत्पन्न हुई। तिरस्कार करने वाले सेठ भक्ति से मुनि की सेवा में जुड़ गये। वह भिखारी जिसने मात्र खाने के लिए दीक्षा ली थी, वह सोचने लगा कि कल तक भिखारी अवस्था में जो मेरा तिरस्कार कर रहे थे। वे ही सेठ-साहुकार आज मेरे पास प्रभु द्वारा प्रदत्त संयम जीवन होने से तन-मन-धन से मेरी सेवा कर रहे है। "अहो! धन्य है इस संयम जीवन को!" इस प्रकार संयम धर्म की अहोभाव से अनुमोदना करते हुए उस नूतन मुनि ने प्राण त्याग दिए। वहाँ से मरकर वह अशोक महाराजा का पौत्र संप्रति राजा बना। जिसने सवा लाख जिन मंदिर एवं सवा करोड़ जिन प्रतिमा भरवाई थी।
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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