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संपञ्जउ मह एअं, तुह नाह! हे नाथ! आपको 'प्रणाम करने से मुझे ऐसी परिस्थिति "प्राप्त हो 'पणामकरणेणं ।।4।। मेरी तेरह प्रार्थना सफल हो ।।4।। 'सर्व मंगल मांगल्यं, 'सर्व मङ्गलों में मङ्गलरुप 'सर्व कल्याण कारणं। 'समस्त कल्याणों का कारण रुप 'प्रधानं 'सर्वधर्माणां, 'सर्व धर्मों में श्रेष्ठ जैनं "जयति"शासनम् ।।5।। जैन "शासन "जयवन्त है ।।5।।
2 9.अरिहंत-चेड़याणं (चैत्यस्तव) सूत्र मदरसे भावार्थ- आज दिन तक जिन चैत्यों में प्रभु की सर्व भक्तों द्वारा जितने भी वंदन, पूजन, सत्कार, सम्मानादि हुए है उन सबका अनुमोदन के द्वारा लाभ प्राप्त करने हेतुरुप काउसग्ग का उद्देश्य इस सूत्र में बताया गया है। 'अरिहंत- चेइयाणं करेमिकाउस्सग्गं . 'अरिहंत प्रभु की प्रतिमाओं का मैं कायोत्सर्ग करता हूँ . 'वंदणवत्तियाए
'प्रभु के वंदन का लाभ प्राप्त करने के लिए, 'पूअणवत्तियाए
'प्रभु के पूजन का लाभ प्राप्त करने के लिए, . 'सक्कारवत्तियाए
'सत्कार का लाभ प्राप्त करने के लिए, 'सम्माणवत्तियाए
'सम्मान का लाभ प्राप्त करने के लिए, 'बोहिलाभवत्तियाए
'बोधिलाभ सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए, 1°निरूवसग्गवत्तियाए
मोक्ष प्राप्ति के लिए, 'सद्धाए मेहाए
'बढ़ती हुई श्रद्धा से, मेधा (जडता से नहीं) से 'धिईए धारणाए
'चित्त की स्वस्थता से, उपयोग दृढ़ता से अणुप्पेहाए'वड्ढमाणिए
अनुप्रेक्षा (तत्त्वार्थचिंतन) से, 'ठामि'काउस्सग्गं ।।1।।
मैं 'कायोत्सर्ग करता हूँ।।1।।
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