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________________ 'इअ संथुओ महायस!, बहुत 'भक्ति से भरपूर हृदय बनाकर मैंने आपकी 'भत्ति भर-निठभरेण हिअएण; 'इस प्रकार स्तुति की है, अत: हे 'महायशस्वी प्रभो! 'ता"देव!"दिल"बोहिं, 'जिनेश्वरों में चन्द्र के समान हे पार्श्व प्रभु! हे "देवाधिदेव "भवे भवे पास जिणचंद!।।5।। आप हमें "भवो-भव में "सम्यक्त्व (बोधि) "प्रदान करें।।5।। ___ 8. 'जय वीयराय' (प्रणिधान) सूत्र का भावार्थ- चैत्यवंदन के दौरान बोले जाने वाले इस सूत्र में परमात्मा की स्तवना के साथ तेरह प्रार्थना की गई है। जो आत्म शुद्धि एवं आत्म सिद्धि के लिए अनिवार्य है। सूत्र के चित्र को गौर से समझे एवं चित्र में लिखी बातों पर ध्यान देने पर तेरह प्रार्थना का रहस्य स्पष्ट होगा । सूत्र एवं अर्थ के बीच-बीच में जो नंबर दिये है - वे प्रार्थना के है। 'जय'वीयराय! जगगुरू! हे 'वीतराग! हे जगद्गुरु! आपकी जय हो। होउ'ममं तुह पभावओ भयवं। हे भगवान! आपके (अचिंत्य) "प्रभाव से 'मुझे भवनिव्वेओ मग्गाणुसारिआ, (1) संसार के प्रति वैराग्य, (2) मोक्ष मार्ग पर चलने की शक्ति, "इट्ठ-फलसिद्धी।।1।। (3)"इष्ट फल की सिद्धि हो(जिससे धर्माराधना निर्विघ्न हो सके)।।1।। 'लोगविरूद्धच्चाओ, (4) लोकसंक्लेशकारी प्रवृत्ति का त्याग हो, 'गुरुजणपूआ परत्थकरणंच (5) मातापितादि पूज्यजनों की सेवा हो, (6) पर हित करण हो। 'सुहगुरुजोगो तव्वयणसेवणा (7) सद्गुरु की प्राप्ति हो। (8) उनकी आज्ञा का पालन हो। आभवमखंडा।।2।। जब तक संसार में रहना पड़े, इन आठ वस्तु की हमेशा प्राप्ति हो।।2।। 'वारिजइ जइविनियाण- 'हे वीतराग! आपके शास्त्र में (प्रवंचन में) 'बंधणं 'वीयराय! तुह समये; निदान बंधन का यद्यपि 'निषेध किया है 'तहवि "मम "हुज"सेवा, तथापि भवो-भव में भवे भवे"तुम्ह"चलणाणं।।3।। (9)"मुझे "आपके "चरणों की "सेवा "प्राप्त हो।।3।। 'दुक्खक्खओ कम्मक्खओ, (10) 'मेरे दुःख का क्षय हो, (11) कर्मों का क्षय हो। 'समाहिमरणंच बोहिलाभो। (12) समाधिमरण व (13) बोधिलाभ की प्राप्ति हो।
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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