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________________ VER 6 . नमोऽहत् सूत्र मदर नमोऽर्हत्-सिद्धा-ऽऽचार्यो-पाध्याय-सर्वसाधुभ्यः। अर्थ- अरिहंत-सिद्ध-आचार्य-उपाध्याय एवं समस्त साधु भगवंतों को मैं नमस्कार करता हूँ। Ve 7 . उवासनहरं सूत्र भावार्थ- इस स्तोत्र के माध्यम से इसके रचयिता आचार्य भगवंत श्री भद्रबाहु स्वामी ने पार्श्वनाथ भगवान की स्तवना की है। इसमें अनेक मंत्र-तंत्र-यंत्रों का संकलन है। महाप्रभावक नव- स्मरण में इसका दूसरा स्थान है। इस सूत्र का स्तवन के रुप में उपयोग किया जाता है। 'उवसग्ग हरं पास, 'उपसर्ग को हरने वाला सामीप्य है जिनका, "पासं, “वंदामि कम्म घण मुक्कं; कर्म 'समूह से मुक्त, 'सर्प के विष का 'विसहर विस निन्नासं, "नाश करनेवाले, "मंगल-"कल्याण के 1°मंगल"कल्लाण"आवासं।।1।। आवास रुप "पार्श्वनाथ को "मैं वंदन करता हूँ।।1।। 'विसहर-फुल्लिंग मंतं, 'विसहरफुल्लिंग नामक मन्त्र को, 'कंठे'धारेइजो 'सया मणुओ; 'जो मनुष्य हमेशा कंठ में धारण करता है, . 'तस्स गह रोग"मारी, "उसके दुष्टग्रह, "महारोग, "महामारी, "दुदुजरा"जंति "उवसाम।।2।। "दुष्ठज्वर आदि उत्पात "उपशान्त "होते हैं।।2।। 'चिट्ठउ दूरे मंतो, (हे प्रभो!) आप का 'मन्त्र तो दूर रहो, . 'तुज्झ'पणामो वि बहुफलो 'होइ; किन्तु आपको किया गया प्रणाम भी बहुत फलदायी है। 'नर तिरिएसु वि"जीवा, (इससे) मनुष्य व तिर्यंच (गति)में भी "जीव पावंतिन"दुक्ख"दोगच्च।।3।। "दु:ख व "दुर्गति (भव-दुर्दशा) "नहीं पाता है।3।। 'तुह सम्मत्ते लद्धे, 'चिन्तामणि व कल्पवृक्ष से भी अधिक (समर्थ) 'चिंता-मणि कप्प-पायव महिए; 'आपका सम्यग्दर्शन प्राप्त हो जाने पर 'पावंति "अविग्घेणं, 'जीव जरा-मरणरहित स्थान (मोक्ष) को 'जीवा अयरामरं ठाणं।।4।। १°बिना विघ्न सरलता से "प्राप्त कर लेता है।।4।। (156
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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