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________________ टूट गए सुषमा और आदित्य पर। उन्हें तो अब तक यह भी नहीं पता चल रहा था कि आखिर क्या कमी रह गई उनके परवरिश में, जो डॉली ने इतना बड़ा फैसला ले लिया। डॉली के रिश्ते की बात चल रही थी। फिर भी सुषमा के दिल में एक डर बैठ गया था कि कहीं सचमुच डॉली भाग कर न चली जाए। सुषमा को एक ऐसे व्यक्ति की जरुरत थी जो उसकी समस्या का समाधान कर सके और डॉली को भी समझा सके। ऐसी कठिन परिस्थिति में सुषमा को जयणा की याद आई और वह तुरंत जयणा के पास पहुँच गई। रोते हुए उसने जयणा को सारी बात बता दी।) सुषमा - जयणा! काश, मैंने तुम्हारी बात पहले ही मान ली होती तो मुझे आज यह दिन देखना नहीं पड़ता। जयणा! अब तुम ही कुछ कर सकती हो। तुम ही मेरे घर को उजड़ने से बचा सकती हो। जयणा अब तुम ही आकर डॉली को समझाओ कि वो जो कर रही है वह गलत है। (इतना कहकर सुषमा रोने लगी।) जयणा - सुषमा! तुम रोना बंद कर दो। सब कुछ ठीक हो जाएगा। चलो मैं आकर डॉली को समझाने की कोशिश करती हूँ। (सुषमा जयणा को अपने घर ले गई। जयणा अकेली डॉली के कमरे में गई।) जयणा- कैसी हो बेटा? डॉली- ठीक हूँ आंटी! जयणा - क्या बात है डॉली! आज मुँह इतना उतरा हुआ क्यों है और आँखे तो सुजकर लाल हो गई है ऐसा लगता है कि तुम बहुत रोई हो। क्या बात है तबियत तो ठीक है ना? डॉली - आंटी! मुझे पता है कि मम्मी ने आपको सब कुछ बता दिया है। शायद इसलिए आप मुझे समझाने आई हो। लेकिन आप जाकर मम्मी से कह दीजिए कि मैं शादी करुंगी तो समीर से वर्ना घुट-घुट कर मर जाऊँगी। जयणा - कैसी बातें कर रही हो डॉली! क्या सुषमा को तुम्हारी चिंता नहीं है? वह तो कब की आश लगाए बैठी है कि वह कब तुम्हारे हाथ पीलें करें। तुम्हें किसी भी तरह की तकलीफ न हो इसलिए अच्छे से अच्छा खानदानी परिवार ढूँढ रही है तुम्हारे लिए। रानी की तरह राज करोगी तुम वहाँ और तुम समीर के बारे में क्या जानती हो ? वह कहाँ रहता है ? उसका खानदान कैसा है ? किस जाति का है ? क्या करता है? क्या खाता है ? इस तरह नादान बनकर बिना सोचे विचारे इतना बड़ा फैसला लेना उचित नहीं है और हमारा शास्त्रीय नियम यह है कि समान जाति एवं समान कुल में विवाह संबंध किया जाए। इससे लग्न ग्रंथी से जुड़ने वाले लड़के-लड़की के विचारों में काफी समानता मिल पाती है तथा उससे उत्पन्न होने वाली संतान में खून से ही (146)
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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