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डॉली - मोक्षा! बहुत दिनों बाद मिली हो। मोक्षा - अरे डॉली! मैं तुम्हें प्रतिक्रमण के लिए बुलाने आई थी और तुम आज चौदस को पीझा खा रही हो, वो भी रात को। तुम यह नहीं जानती कि पीझा अभक्ष्य होता है। डॉली- चौदस-वौदस का तो पता नहीं पर मेरी मॉम को पार्टी में जाना था। इसलिए उन्होंने होटल से पीझा मँगवा दिया और प्रतिक्रमण तो मैं वैसे भी नहीं आ सकती क्योंकि मेरी ट्यूशन टीचर आने वाली है। मोक्षा- ओ.के. डॉली! जैसी तुम्हारी मर्जी।
(मोक्षा ने प्रतिक्रमण से घर आकर शाम को डॉली से हुई सारी बातें अपनी मम्मी से कही। सुषमा की इतनी लापरवाही को देखकर उसे समझाने के लिए एक दिन जयणा सुषमा के घर गई। सुषमा उस वक्त अखबार पढ़ रही थी।) जयणा - सुषमा! कैसी हो तुम? क्या कर रही हो? सुषमा- अरे जयणा! तुम कब आई ? मैं तो ऐसे ही समय बिताने के लिए अखबार पढ़ रही थी। आज हमारे घर कैसे आना हुआ? जयणा - चातुर्मास चल रहा है फिर भी तुम मंदिर, व्याख्यान आदि में कहीं दिखाई नहीं देती। इसलिए पूछने आई थी तबियत आदि ठीक है ना? सुषमा - क्या जयणा! तुम भी कैसी बात कर रही हो? तुम्हें तो पता है मुझे कितना काम है। किटी पार्टी, शॉपिंग इनसे मुझे फुर्सत मिले तो मैं मंदिर, व्याख्यान में आऊँ ना। जयणा - अच्छा ठीक है तुम्हें समय नहीं है पर डॉली को तो पाठशाला भेज दिया करो। उसे क्या काम है ? सुषमा - डॉली और पाठशाला! बिल्कुल नहीं। वैसे भी पाठशाला के समय उसे डान्स क्लास जाना होता है
और मैं नहीं चाहती कि वह डान्स क्लास छोड़ दे। जयणा, तुम भी क्या 19 वीं सदी की बातें करती हो। ये क्या बच्चों के पाठशाला जाने के दिन है। ये तो उनके घूमने-फिरने की उम्र है। मौज-मस्ती करने के दिन है। मैं तो अपनी बेटी को मॉडर्न बनाना चाहती हूँ मॉडर्न। जयणा - लेकिन सुषमा! इन्सान चाहे कितना भी मॉडर्न बन जाए लेकिन उसे अच्छे संस्कार तो पाठशाला जाने से ही मिलेंगे ना! पाठशाला में विनय-विवेक जैसे बहुमूल्य गुणों के साथ-साथ सम्यग् ज्ञान की शिक्षा भी दी जाती है। सुषमा - मैं तो इन सब बातों पर विश्वास नहीं करती और मेरी मानो तो तुम भी अपनी बेटी को वर्तमान