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________________ 15 16 24 17 19 18 इस प्रकार सिद्धशीला पर 24 तीर्थंकर प्रभु का ध्यान करने के बाद श्रावक अपने मन में निम्न विचार करें। श्रावक की धर्म जागरिका: 1. मैं कौन हूँ? मैं आत्मा हूँ। 2. मैं कहाँ से आया हूँ ? 84 लाख जीवयोनि में भटककर आया हूँ। 3. अब मुझे कहाँ जाना है ? मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है ? “सीमंधर स्वामी के पास हमें जाना है, संयम लेके केवल पाके मोक्ष हमें जाना है।" इस लक्ष्य को दृढ़ता पूर्वक 3 बार मन में दोहराईये। 4. मैं कौन-सा सत्कार्य शक्ति होने पर भी नहीं करता ? 5. कब मैं जिनाज्ञानुसारी सच्चा श्रावक बनूँगा? 6. मुझे कौन - सा दोष सता रहा है ? क्रोध, मान, माया, लोभ, निंदा, ईर्ष्या आदि सोचकर प्रतिदिन किसी एक दोष को दूर करने का संकल्प करें। जैसे आज मैं क्रोध नहीं करूँगा इत्यादि । 7. मैं छ: काय की विराधना में फँसा प्राणी कब इस मोह माया के बंधन को तोड़कर संयम का मार्ग अपनाऊँगा? जिन लोगों से सुबह जल्दी उठा नहीं जाता उनको रात को सोते समय अपने सिर से जमीन, गद्दी अथवा तकिये पर तीन बार टकोर लगाकर कहना, कि मुझे 4 बजे उठाना और शरीर को भी कहना कि मुझे साथ देना। इस प्रकार करने से आप समय पर उठ जायेंगे। परन्तु एक बार उठने के बाद प्रमाद करके वापस नहीं सोना। यदि उठते समय नींद न खुले तो संथारा पोरसी में बताये हुए 'उसास निरंभणा लोए' इस पाठ के अनुसार नाक दबाकर श्वास रोके, जिससे नींद उड़ जायेगी। फिर नाक के जिस तरफ के छिद्र में से हवा निकल रही हो, उस तरफ के पैर को प्रथम उठाकर श्वास को रोककर जमीन पर रखें। फिर शौच विधि कर सुबह का प्रतिक्रमण करें। यदि पूरा प्रतिक्रमण न कर सको तो कम से कम इरियावहियं कर कुसुमिण - दुसुमिण का 4 लोगस्स का काउस्सग्ग कर भरहेसर, सात लाख एवं सकलतीर्थ 003
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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