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भावों से प्रभु के समक्ष नृत्य करें। * हे राज राजेश्वर! यह चामर आपके चरणों में झुककर जैसे तुरंत ही वापस ऊपर उठता है ; उसी प्रकार आपके चरणों में झुकने वाला मैं भी अवश्य ऊर्ध्वगति को पाऊँगा। चामर पूजा कादोहा:- “बे बाजु चामर ढाले, एक आगलवज उछाले।
जई मेरुधरी उत्संगे, इन्द्र चौसठ मलियारंगे॥"
अक्षत पूजा की विधि * कंकर, कीड़ी तथा जीवाणु रहित दोनों तरफ धार वाले उत्तम प्रकार के अखंडित चावलों का उपयोग करें। * अक्षत पूजा करते समय इरियावहि शुरु न करें क्योंकि अक्षत-नैवेद्य एवं फल ये तीनों द्रव्य पूजा है। इरियावहि-चैत्यवंदन आदि भाव-पूजा है अत: दोनों एक साथ करना अविधि है। * सर्वप्रथम स्वस्तिक, तीन ढ़गली और फिर सिद्धशीला इस क्रम से आलेखे। * मन्दिर से निकलने के पहले अक्षत, नैवेद्य तथा पाटला योग्य स्थान पर रख दें। अक्षत पूजा का दोहा- “शुद्ध अखंड अक्षत ग्रही, नंदावर्त विशाल। .
पूरी प्रभु सन्मुख रहो,टाले सकल जंजाल॥" “ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय,
___ श्रीमते जिनेन्द्राय अक्षतं यजामहे स्वाहा।' अर्थ: हे प्रभु ! इस चार गति रूप अनंतानंत संसार भ्रमण करके अब मैं थक चुका हूँ। अब आपके प्रभाव से ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप रत्नत्रयी की प्राप्ति कर शीघ्रातिशीघ्र में सिद्धशीला पर बिराजमान बनूँ। प्र.: स्वस्तिक चावल से ही क्यों करना चाहिए? उ.: जिस प्रकार चावल बोने से वापस नहीं उगते, उसी प्रकार हमें भी पुन: जन्म न लेना पड़े इस हेतु से चावल का स्वस्तिक करते है।
नैवेद्य पूजा की विधि * श्रेष्ठ द्रव्यों द्वारा घर में बनाई गई मिठाई या खड़ी शक्कर, गुड़ आदि से नैवेद्य पूजा करें। * बाज़ार की मिठाई, पीपरमेंट, चॉकलेट जैसी अभक्ष्य वस्तुओं का उपयोग नहीं करें। * नैवेद्य स्वस्तिक पर ही चढ़ाएँ। नैवेद्य पूजाकादोहा:- “अणाहारी पद में कर्या, विगह गइ अनंत।