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बनाता है, उसी प्रकार मेरे आत्मा में रही मिथ्यात्व की दुर्गन्ध दूर हो और सम्यग्दर्शन की सुवास से मेरे आत्मा का एक-एक प्रदेश सुवासित बनें तथा धूप घटा की तरह मेरी आत्मा भी उर्ध्वगमन करें।
दीपक पूना की विधि * दीपक को थाली में रखकर दोहा बोलते हुए दोनों हाथों से घड़ी के काँटों की दिशा के जैसे घूमाएँ। * घी का दीपक घर से लाये। * पुरुष एवं स्त्रियाँ परमात्मा के दायीं ओर खड़े रहकर दीपक पूजा करें। दीपक पूजा कादोहा:- “द्रव्य दीपक सुविवेकथी, करता दुःख होय फोक।
भावदीपक प्रगट हुए, भासित लोकालोक॥" “ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय,
. श्रीमते जिनेन्द्राय दीपं यजामहे स्वाहा।' अर्थ: “हे परमात्मा। जिस प्रकार यह दीपक अंधकार का विनाश करके प्रकाश फैलाने वाला है, उसी प्रकार इस पूजा के द्वारा, मेरे अज्ञान रूपी अंधकार का नाश हो और ज्ञान का विवेकपूर्ण प्रकाश मेरे आत्म-प्रदेश पर प्रकाशित हो। जिससे सत्य को सत्य के रूप में और असत्य को असत्य के रूप में पहचान सकूँ। तथा यह दीपक शुद्ध ही नहीं, पवित्र भी है। उसी प्रकार मेरी आत्मा भी शुद्ध और पवित्र है। उससे मैं लगातार सभानसचेत बना रहूँ।
दीपक को परमात्मा की दाहिनी ओर स्थापित करें। दीपक को कभी भी खुला न रखें। उसे फानस में रखें या छिद्रालु ढक्कन से ढंक दे। जिससे उसके प्रकाश से आकर्षित होकर क्षुद्र जीव जन्तु दीपक की ज्योत में गिरकर मरे नहीं।
दर्पण दर्थन तथा पंखा ढालने की विधि * हृदय स्थान पर दर्पण रखकर, उसमें प्रभु के प्रतिबिंब को देखकर मानो कि अपने हृदय में परमात्मा है ऐसी भावना से स्वयं को सिद्धस्वरूपी महसूस करें। * दर्पण में प्रतिबिम्बित भगवान को सेवक भाव से पंखा ढाले। दर्पण दर्शन कादोहा:- “प्रभु दर्शन करवा भणी, दर्पण पूजा विशाल।
आत्मादर्शनथी जुमे, दर्शन होय तत्काल॥"
चामर नृत्य करने की विधि ___* अनादिकाल से कर्म ने इस संसार में मुझे खूब नचाया है लेकिन अब कर्मों के आगे नाचना न पड़े इन