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________________ हे प्रभु ! लोकांतिक देवों के वचन से आपने इन हाथों से वर्षीदान दिया, आपकी इस पूजा के प्रभाव से मैं भी आपके समान वर्षीदान देकर संयम को स्वीकार करूँ। इस भावना से मैं आपके कांडे की पूजा करता 100 4.खभे (कंधा): “मान गयुदोय अंशथी,देखी वीर्य अनन्त। भुजाबले भव जलतर्या, पूजो खंध महंत"॥4॥ हे प्रभु! आपके अनंत वीर्य (शक्ति) को देखकर दोनों कंधों में से अहंकार निकल गया एवं इन भुजाओं के बल से आप भव जल तीर गयें। उसी प्रकार आपकी पूजा के प्रभाव से मेरा भी अहं चला जायें एवं मेरी भी भुजाओं में संसार को तीर जाने की ताकत प्राप्त हो। इस भावना से मैं आपके कंधे की पूजा करता हूँ। 5.शिखाः “सिद्धशीला गुण उजली, लोकांते भगवंत। वसिया तिणे कारण भवि,शिरशिखा पूजंत"॥5॥ उज्जवल स्फटिक वाली सिद्धशीला के ऊपर लोकांत भाग में आपने वास किया है, अतः मुझे भी वह स्थान प्राप्त हो। इस भावना से मैं आपके शिखा की पूजा करता हूँ। . 6.ललाटः “तीर्थंकर पद पुण्यथी, त्रिभुवन जनसेवंत। ___ त्रिभुवन तिलक समाप्रभु, भाल तिलक जयवंत"॥6॥ हे प्रभु! आप तीर्थंकर नामकर्म के उदय से तीन लोक में पूज्य बने हो तथा आप तीन लोक के तिलक समान हो। इसलिए आपके भाल में तिलक कर मैं भी अपना भाग्य अजमाना चाहता हूँ। इस भावना से मैं आपके ललाट की पूजा करता हूँ। 7.कंठः “सोल प्रहर प्रभुदेशना, कंठे विवरवर्तुल। __मधुर ध्वनि सुर नर सुणे, तेणे गले तिलक अमूल'॥7॥ हे प्रभु! आपने 16 प्रहर तक सतत मधुर ध्वनि से देशना दी। देव-मनुष्य ने वह देशना सुनी। आपकी कंठ पूजा के प्रभाव से मुझे भी आपकी वाणी सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो। इस भावना से मैं आपके कंठ की पूजा करता हूँ। 8.हृदयः "हृदय कमल उपशम बले, बाल्यारागने रोष। हिम दहे वनखंड ने, हृदय तिलक संतोष'॥४॥ हे प्रभु! जिस प्रकार हिम (बर्फ) वनखंड को जला देता है, उसी प्रकार आपने हृदय कमल के उपशम 3
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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