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प्र.: शासन के देवी-देवता की पूजा कैसे करनी चाहिए? उ.: शासन के देवी-देवता सम्यक्त्वधारी एवं प्रभु के पूजारी होने से अपने साधर्मिक हैं, अतः अंगूठे से मस्तक पर तिलक करना चाहिए तथा जय जिनेन्द्र अथवा प्रणाम किया जाता है। परन्तु उनके सामने अक्षत आदि से पूजा करने की जरुरत नहीं है। प्र.: केसर कितनी कटोरी में लेना चाहिए? एवं उसका उपयोगकैसे करना चाहिए? उ.: केसर अलग-अलग कटोरियों में लेने की कोई विशेष जरूरत नहीं है। एक ही कटोरी से क्रमशः परमात्मा, सिद्धचक्रजी, गणधर भगवंत, गुरुभगवंत एवं अंत में शासनदेवी-देवता की पूजा कर सकते हैं। यदि मूलनायक भगवान की पक्षाल पूजा बाकी हो एवं अन्य भगवान की पूजा पहले कर लेनी हो तो बहुमानार्थ अलग से थोड़ा केसर रख सकते हैं। पहले से केसर इतना ही ले कि अंत में संघ का माल वेस्ट न हो। तथा केसर की कटोरी, थाली अपने हाथ से साफ धोकर व्यवस्थित स्थान पर रखनी चाहिए, क्योंकि प्रभु मंदिर कोई संघ अथवा पूजारी का ही नहीं, अपना भी है। हाथ एकदम साफ धोयें, ताकि उसमें केसर रह न पायें। अन्यथा केसर रह जाने पर खाते समय पेट में जाने से देव-द्रव्य भक्षण का दोष लगता है। प्रश्न : नवांगी पूजाके अर्थ दोहे पर से समझाओ? उ.: 1.चरणः “जल भरी संपुट पत्रमा, युगलिकनर पूजंत।
ऋषभ चरण अंगुठड़े,दायक भवजल अंत"॥1॥ हे प्रभु! आपके अभिषेक हेतु युगलिक जब पत्र-संपुट में पानी भरकर लाये तब तक आपको इन्द्र महाराजा ने भक्ति पूर्वक वस्त्राभूषण से सज्जित कर दिया था। यह देख विनीत युगलिकों ने प्रभु के चरणों की जल से पूजा की। इसी प्रकार मैं भी आपके चरणों को पूजकर भवजल का अंत चाहता हूँ। इस भावना से मैं आपके चरण की पूजा करता हूँ। 2.जानुः “जानु बले काउस्सग्गरह्मा, विचर्या देश विदेश।
खड़ा-खड़ाकेवल लघु, पूजोजानु नरेश'॥2॥ हे प्रभु! आपने इस जानु बल से काउस्सग्ग किया, देश-विदेश में विचरण किया और खड़े-खड़े ही आपने केवलज्ञान प्राप्त किया। आपकी इस जानु पूजा के प्रभाव से मेरे भी जानु में वह ताकत प्रगट हो। इस भावना से मैं आपके जानु की पूजा करता हूँ। उ.हाथ के कांडे : “लोकांतिकवचने करी, वरस्यावरसीदान।
कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भविबहुमान"॥3॥