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________________ कर रहे है। उन्हें संपत्ति अधिक ही मिलनी चाहिए। यह है पद्म लेश्या का परिणाम। * सामान्य व्यक्ति रिक्शा वाले के पास 1 रुपया भी नहीं छोड़ता, साग-भाजी वाले के पास 10 पैसा भी नहीं छोड़ता। लेकिन इस पद्म लेश्या वाले भाई ने न्याय के लिए 9 लाख रुपये छोड़ दिए। 6. शुक्ल लेथ्या - इस लेश्या वाला जीव धर्म बुद्धि से युक्त, सभी कार्यों में पाप से दूर रहने वाला, हिंसादि पापों में अरुचि रखने वाला एवं दुर्गुणों के प्रति अपक्षपाती होता है। * शुक्ल लेश्या के परिणाम वाला जीव दूसरों के हित के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है। दृष्टान्त- प्रभु महावीर ने नंदन ऋषि के भव में मात्र जीवों को तारने के उद्देश्य से 11,80,645 मासक्षमण किए। इसमें उनका कोई स्वार्थ नहीं था। यह शुक्ल लेश्या का परिणाम है। * गजसुकुमाल के ससरे ने जब सिर पर मिट्टी की पाल बांधकर उसमें अंगारे भरें। तब गजसुकुमाल ने विचार किया कि यदि मैं इस असह्य वेदना में अपने शरीर के मोह से थोड़ा भी हिल गया तो ये अंगारे ज़मीन पर गिरने से असंख्य छोटे-छोटे जीव-जंतु मर जायेंगे। अत: उनकी रक्षा के लिए मस्तक को जलने दिया, पर अहिले नहीं। यह शुक्ल लेश्या का परिणाम है। * तेजो, पद्म, शुक्ल लेश्या वाले जीव परोपकार के लिए अपने प्राण भी त्याग देते है। प्रस्तुत विषय का अधिक स्पष्टीकरण करने के लिए शास्त्र ग्रंथों में जंबूवृक्ष एवं चोर का उदाहरण दिया गया है। छ: लेस्या पर जामुनवृक्ष का दृष्टांत एक बार मार्ग-भूले छ: पथिक किसी जंगल में जा पहुँचे । तीव्र क्षुधा और तृषा से उनका बुरा हाल था। अत: इष्ट भोजन व जल की खोज में इधर-उधर भटकने लगे। अचानक उन्हें जामुन से लदा एक जामुन वृक्ष दृष्टिगोचर हुआ । लालायित होकर वे वृक्ष के पास गये और ललचायी नज़र से जामुनों की ओर देखने लगे । 66 तब उनमें से एक ने व्यग्र हो कहा - क्यों न इसे जड़मूल से उखाड़ दे। ताकि निश्चिंत होकर पेट भरकर जामुन खाने को मिलेंगे।” अर्थात् केवल जामुन के खातिर वृक्ष को ही जड़मूल से उखाड़ने की दुष्ट वृत्ति उत्पन्न होना कृष्ण लेश्या कहलाती हैं। इस तरह अपना स्वार्थ सिद्ध करने हेतु अन्य के प्राणों की परवाह किये बिना संहार करने की दुष्ट भावना रखनेवाला अत्यंत स्वार्थान्ध जीव, कृष्ण लेश्या से युक्त होता है। चित्र में प्रथम क्रमांक के पुरुष को जामुन के लिए वृक्ष को ही जड़मूल से उच्छेदन करता दिखाया है। उसका पोषाक एकदम काला है। मतलब कृष्ण लेश्या का वर्ण काला होता है। इतने में दूसरे पुरुष ने कहा- "ऐसे विशाल वृक्ष को भला उखाड़ने से क्या लाभ? साथ ही हमें 091
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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