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2. सूक्ष्म जीवों के अंगोपांग नाश होने से- दर्शनावरणीय कर्म 3. जीवों को वेदना होने से- वेदनीय कर्म 4. फटाके फोड़ने में आनंद आने से - मोहनीय कर्म 5. फोड़ते समय आयुष्य बंध हो तो- आयुष्य कर्म 6. फटाके से जलकर मर जाये तो- नाम कर्म 7. निमित्त बनने से- गोत्र कर्म
8. किसी के नींद में, पढ़ाई में अंतराय (विघ्न) देने से- अंतराय कर्म प्र.: कई लोग हमेशा दर्शन-पूजन आदिधर्म करते है तो भी उनको दुःख क्यों आते है ? उ.: दो दोस्त एक बार पार्टी में गये। रमेश ने पार्टी में मिर्ची वडे बहुत खा लिए और उसको दूसरे दिन सुबह से दस्ते चालु हो गयी। 9 बजे तक तो 10 बार जाकर आ गया। सुरेश को पूछा कि ऐसा क्यों ? मैंने सुबह से
कुछ खाया ही नहीं तो भी यह हालत्र और तुमने सुबह से कितना खा लिया तो भी तुझे कुछ नहीं हुआ। दोनों __डॉक्टर के पास गये। डॉक्टर को दोनों की बात बताई । डॉक्टर ने पूछा कल किसने कितना खाया? रमेश ने
कहा-मैंने कल बहुत खाया। डॉक्टर समझ गये और कहा कल खाया आज उदय (बाहर) में आया। आज खाया कल आयेगा। इसी प्रकार इस भव में किया हुआ पुण्य अगले भव में काम आयेगा। पूर्व भव में किया हुआ पाप कर्म वह अब उदय में आ रहा है। उसे समता से भोगना चाहिए । (नोट: कर्मग्रन्थ का विस्तृत विवेचन इस कोर्स में आगे यथास्थान दिया जायेगा।)
उपमा द्वारा प्रत्येक कर्म का फल 1. ज्ञानावरणीय कर्म - आँख पर बाँधी हुई पट्टी के जैसा। 2.दर्शनावरणीय कर्म - द्वारपाल के जैसा। 3.वेदनीय कर्म शहद से लिप्त तलवार की तीक्ष्ण धार जैसा। 4.मोहनीय कर्म । - मदिरा (शराब) के जैसा। 5. आयुष्य कर्म
बेड़ी के जैसा। 6. नाम कर्म
- चित्रकार के जैसा। 7.गोत्रकर्म
कुंभार के जैसा। 8. अंतराय कर्म
भंडारी के जैसा