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जीव का विकास क्रम र जीव के विकास क्रम को समझने से पहले जीव की संसार स्थिति, संसार-परिभ्रमण कौन-सा जीव मोक्ष में जाने योग्य है, कौन-सा जीव अयोग्य है तथा जीव के विकास में साधक एवं बाधक तत्त्व कौन-से है.... इन सब बातों को जान लेना अति आवश्यक है।
.) जीव की संसार स्थिति . जीव अनादि है- विश्व में जितने भी जीव है, वे सभी सिद्ध भगवंत बनने के रॉ-मेटीरियल है। अनादिकाल से जीव इस संसार में परिभ्रमण कर रहा है। जीव कभी नया पैदा नहीं होता है। जीव एवं कर्म कासंबंध भी अनादि है-जैसे सोने की खान में सोना एवं मिट्टी का संबंध अनादि है। जगत भी अनादि है- कर्म अनादि होने से कर्म कृत संसार भी अनादि है।
अर्थात् जो भटकता है, वह जीव अनादि है। जिसके कारण भटकता है, वह कर्म संबंध अनादि है। जहाँ भटकता है, वह स्थान (संसार) भी अनादि है।
.) सर्व जीव की दो राशि . (1) अव्यवहार राशि- जीव का अनादि निवास स्थान निगोद है। निगोद अर्थात् सूक्ष्म साधारण वनस्पतिकाय। इनके एक शरीर में अनंत आत्माएँ होती है। वे सब एक साथ श्वास लेते हैं एवं एक साथ आहार ग्रहण करते हैं। अपने एक पलकारे जितने समय में ये जीव 18 बार जन्म एवं 17 बार मरण को प्राप्त होते हैं। इस सूक्ष्म निगोद का एक ऐसा विभाग भी है कि जहाँ से आज दिन तक जीव एक बार भी बाहर निकलकर बादर अवस्था को प्राप्त नहीं हुआ है। अनादि काल से वहीं पर है । ऐसा जीव अव्यवहार राशि का जीव कहलाता हैं। (2) व्यवहार राशि- जब एक जीव सिद्ध होता है तब एक जीव अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में आता है। व्यवहार राशि में आने के बाद जीव का 84 लाख योनि में परिभ्रमण एवं पृथ्वी आदि के रुप में व्यवहार शुरु होता है।
O) जीव की तीन क्वॉलिटी . (1) अभव्य जीव- जिस आत्मा में स्वभाव से मोक्ष पाने की योग्यता नहीं होती, ऐसे जीव को अभव्य जीव कहते है। जैसे किसी स्त्री को पति का योग मिलने पर भी पुत्र की प्राप्ति नहीं होती, वैसे ही अभव्य
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