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________________ पृष्ठ नाम नाम कूप-दृष्टान्त - ५५ यतना का सामर्थ्य द्रव्य स्तव की अनुमोदना ५८ यतना का महत्त्व मुनि की द्रव्य स्तव में अनुमोदना ५९ थोडा दोष भी लाभप्रद हिंसा-अहिंसा का विचार ६. उपकार का अभाव, हिंसा भी हिंसा-अहिंसा ६१ अनाशातना और अहिंसा लोक में प्रमाण के विषय में- ६३ पौरुषेय-अपौरुषेय विचार मूढेतर भाव योग का प्रामाण्य ६४ पौरुषेय-अपौरुषेयपना " सर्वज्ञ प्रमाता नहीं" पूर्व पक्ष ६५ वेद वचनो की असंभवत्रूपता मलेच्छो का वचन क्यों प्रमाण नहीं ? ६६ संभवत्-असंभवत्-विचार वचन मात्र प्रवर्तक नहीं ६९ वेदहिंसा-अहिंसा का उपसंहार भावापत्ति-निस्तार गुण ७० द्रव्य-भाव स्तव का उपसंहार आरंभान्तर की निवृत्तिदा प्रवृत्ति ७१ द्रव्य-भाव स्तवों की विशेषता वैध का दृष्टान्त ७२ द्रव्य भाव स्तव में भेद हिंसा धर्म न हो सके ७३ दानादि में द्रव्य-भाव स्तव-पना हिंसा में तार-तम्य ७४ उपसंहार हिंसा का अल्प-बहुत्त्व ७५
SR No.002434
Book TitleStav Parigna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhudas Bechardas Parekh
PublisherShravak Bandhu
Publication Year1971
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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