SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २०३ ] ( ६६ ) [ उपसंहार यहां पर मैंने तुम्हारी सामने स्तव परिज्ञा पद्धति का संक्षेप में वर्णन किया है। इसका विस्तार से भावार्थ श्री आगम सूत्रों से जानना चाहिये || २०३ ।। + अवचूरिकार से की गई ग्रन्थ की उत्तमता को स्तुति जयइ थय - परिन्ना, सार-निट्ठा, सु-वन्ना, सु-गुरु-कय- अणुन्ना, दाण-वक्खाण- गुन्ना, नयन-पन्ना, हेउ - दिट्ठत पुन्ना, गुण-गण-परिकिन्ना, सव्व - दोसेहिं सुन्ना ॥ सारों से भरपूर भरी ऐसी अच्छे वर्णों से युक्त, उत्तम गुरुओं से जिसकी आज्ञा फरमाई गई है । दान-धर्म के व्याख्यान के गुण युक्त (१) । नय को अच्छी तरह से जानने वालों से अर्थात् नय निपुण पुरुषों से कही गयी, हेतु और दृष्टान्तों से पूर्ण भरी, गुणों का समूह से व्याप्त, और सर्व दोषों से रहित, एसी स्तव परोज्ञा (विश्व में) विजय पाती है ॥ १ ॥ अवचूरिकार उपाध्याय श्री मद् यशोविजय वाचक कृत पारमार्थिक आशिर्वचन — इति स्तव - परिज्ञया किमऽपि तत्वमुच्चैस्तरं यशोविजय वाचकं र्यदुदs - भावि भावा- ऽर्जितम् । 1 - ततः कु-मत-वासना-विष-विकार वान्तेर्बुधाः सुधा-रस-पानतो भवत तृप्ति-भाजः सदा ॥ २ ॥ श्री यशोविजय वाचक ने स्तव परीक्षा के साथ भाव पूर्वक का संबंध से जो कुछ उत्तम प्रकार की वस्तु को ( पुण्य को) उपार्जन कर, जो कुछ पाया हो, उससे कुमत की वासना रूप विष का वमन हो जाने से, बुध पुरुषों अमृत रस का पान से सदा संतुष्ट होकर रहो ॥ २ ॥ तन्त्रः किमयैग्नेव भ्रान्तिः स्तव - परिज्ञया ? | ध्वस्ता पान्थ - तृषा नद्या, कूपाः सन्तु सहस्रशः ॥ ३ ॥ यदि नदी से मुसाफिर की तृषा मिट जाती है, तो हजारों कुर्वे भले ही हो, इससे क्या ? उसी तरह, स्तव परिज्ञा से भ्रान्ति दोष मिट जाता है, तो दूसरे अन्य शास्त्रों से क्या प्रयोजन है ? इससे, "स्तव परीक्षा बहुत उच्च प्रकार का शास्त्र है । " ऐसा सूचित किया जाता है || ३ || मेरा क्षतियां रूप दुष्कृत संत कृपया मिथ्या हो । प्रभुदास बेचरदास पारेख कृत-संपादित सावचूरिक स्तव-परिज्ञा की [हिन्दी] भावार्थ- चन्द्रिका संपूर्ण [ २०२५ भाद्रपद में, राजकोट - २ ] ।
SR No.002434
Book TitleStav Parigna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhudas Bechardas Parekh
PublisherShravak Bandhu
Publication Year1971
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy