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________________ गा० ११६ ] (५८) [ द्रव्य स्तव की अनुमोदना + फिर भी शंका उठाकर उसका समाधान भी किया जाता है.... "सो खलु पुप्फा-ऽऽइओ तत्युत्तो, ण जिण-भवणा-55ई वि.?" । "आई"-सहा वुत्तो.” "तय-SS भावे कस्स पुप्फा-ऽऽई ?' ॥११६॥ "वह द्रव्य-स्तव पुष्पादिक रूप से वहां कहा गया है । "पुप्फा-ऽऽइ [दीयं] ण इच्छंति” । "पुष्पादिक को इच्छता नहीं," ''यह निषेध-भावस्तव प्रधान मुनि के लिए किया गया होने से उसको प्रतिषेध निषेध है, तो प्रत्यासत्ति न्याय से-(श्रावक के लिए) पुष्पादि का उपयोग करने का कहा गया है"। "किन्तु,जिनभवनादि कर-करा कर द्रव्यस्तव को करने का वहां कहा नहीं है, तो-उसको वह करने का अधिकार नहीं है।" धूलि में खेलता बालक माता-पिता और गुरु को देख कर हाथ जोड़ लेता है, प्रणाम करता है । तो-प्रणाम स्वरूप की कर्तव्यता की मुख्यता होने से-खडा होना, हाथ जोड़ना इत्यादि में काययोग की देखने में सावध प्रवृत्ति अवश्य होने पर भी “विनय धर्म किया' ऐसा ही माना जायगा, कहा जायगा। यदि, ' मोक्षाभिलाषी जीव को द्रव्य स्तव करने का नहीं है तो, भावस्तव कर ले।" अच्छी बात है, किन्तु-भावस्तव न करना हो-न कर सके, उस को द्रव्वस्तव अवश्य करना होगा । वह थोड़ा भी न करना हो, तो वह “मोक्षाभिलाषी अभी तक नहीं हुआ है।'' यह ही मानना पड़ेगा। द्रव्यस्तव की कक्षा में कई प्रवृतित्रों का समावेश होता है, इसमें से किसी को भी-द्रव्यस्तव की कक्षा से टाल नहीं सकते हैं । कोई जीव एक प्रवृत्ति करे, दूसरा जीव दूसरी कोई प्रवत्ति इसमें से करे। वे द्रव्य स्तव है। अभव्य जीव का सत्पणिधान शून्य मुनि पना भी भावस्तव नहीं है, किन्तु, प्रधान द्रव्यस्तव भी नहीं है। सिवाय, अंशतः श्रुत सामायिक का लाभ हो, जिससे वह नवम ग्रैवेयक तक जा सकता है, किन्तु व्यवहार नय से इसकी भी गणना नहीं की जाती। उसको ग्रैवयेक पना की प्राप्ति, अंशतः भी कुछ द्रव्य स्तव होने से होता है । अन्यथा, इतना भी उच्च स्थान पर किस तरह जा सके ? किन्तु मोक्ष प्राप्ति रूप प्रणिधान की अपेक्षा से वह कुछ भी नहीं । (विशेषज्ञ पुरुषों की कृपा से संशोधन करो। सामान्य समझ के आत्माओं के लिए स्वसमझ अनुसार कुछ स्पष्टता की गई है। -सम्पादक
SR No.002434
Book TitleStav Parigna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhudas Bechardas Parekh
PublisherShravak Bandhu
Publication Year1971
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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